वर्षा देखकर हर्षा दिल,
रिमझिम-रिमझिम-हिलमिल हिल।
प्यासी धरा अब हो उठी खिल,
बिजली चमकी चिल-चिल-चिल।
बच्चे दौड़े हिल मिल हिल,
बच्चे गये तब सभी फिसल।
मेढ़कों के अब बने महल,
और ज़ोर से बोले टिर-टिर-टिर।
सभी बोले अब मिलकर,
वर्षा गई अब और भी बढ़।
वर्षा ऋतु का यही पहर,
सब ऋतुओं से है बढ़कर।
अकड़े आँगन गली नहर,
पानी निकला फर-फर-फर।
नदी तालाब सब गये उफ़न,
वृक्ष देखकर सब गए तन।
वर्षा का तब झूमा मन,
वर्ष-वर्ष और वर्षा कर।
टिप-टिप,टिप-टिप,टिप-टिप कर।
टिम-टिम, टिम-टिम सभी पहर,
सर्वेश कुमार मारुत