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वर्षा देखकर हर्षा दिल ( कविता)

14 जून 2017

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वर्षा देखकर हर्षा दिल,

रिमझिम-रिमझिम-हिलमिल हिल।

प्यासी धरा अब हो उठी खिल,

बिजली चमकी चिल-चिल-चिल।

बच्चे दौड़े हिल मिल हिल,

बच्चे गये तब सभी फिसल।

मेढ़कों के अब बने महल,

और ज़ोर से बोले टिर-टिर-टिर।

सभी बोले अब मिलकर,

वर्षा गई अब और भी बढ़।

वर्षा ऋतु का यही पहर,

सब ऋतुओं से है बढ़कर।

अकड़े आँगन गली नहर,

पानी निकला फर-फर-फर।

नदी तालाब सब गये उफ़न,

वृक्ष देखकर सब गए तन।

वर्षा का तब झूमा मन,

वर्ष-वर्ष और वर्षा कर।

टिप-टिप,टिप-टिप,टिप-टिप कर।

टिम-टिम, टिम-टिम सभी पहर,

सर्वेश कुमार मारुत

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