अब तो मचा है हाहाकार,
वृक्ष बिना बुरा हुआ है हाल।
मानव ने यह किया कमाल,
ख़ुद को पाएं नहीं सम्हाल।
कैसे-कैसे अब किए हैं खेल ?,
हाल बुरा है पेलम-पेल।
गर्मी ने किया बुरा है हाल,
आज ग्लोबल हुआ है लाल।
ग्लेशियर पिघले हालम-हाल,
ख़ुद को पाया नहीं सम्हाल।
नदियों में इसने फेंका है ज़ाल,
हर घर में आया है काल।
उमड़ी, उफ़नी और लाईं बाढ़,
धरती लगी अब आँखें काढ़।
ओज़ोन परत भी हुई अब चीर्ण
अब पराबैंगनी हुई है प्रकीर्ण।
प्रदूषण ने सबको किया है क्षीण,
शरीर हो चुका अब सबका जीर्ण।
वृक्ष कटाई से हालात हुए ख़राब,
इन सबका देगा कौन ज़वाब?
सर्वेश कुमार मारुत