देखो आती है कैसे?,
अपने हाथों में बारी।
लड़ने को तैयार हो चुकीं,
देखो अब हम सब नारी।
जाग गयीं और जाग चुकीं हैं,
अपने अत्याचारों को लेकर ,
सुलगाई अब यह चिंगारी।
अब हम देखें हमारे ऊपर ,
कौन आँख उठायेगा?
अब हम वो प्रचण्ड ज्वाला हो चलीं,
निबटने को अब हर बाज़ी।
तुमने हमको कायर समझा,
और समझ लिया है अधमारी।
बहुत हो चुका -बहुत हो चुका,
जाग गयीं और जाग चुकीं
देखो अब हम सब नारी।
तुम देखो -देखोगे कैसे?,
हम देखें देखेंगे तुमको।
तूने किया अब तक ऐसा,
कर पाओगे न अब वैसा।
चलते बनो और चलते चलो,
ओ !पापी अत्याचारी।
अपने आप की रक्षा करने,
खड़ी हो चुकीं अब सब नारी।
हमें किया जिसने प्रताड़ित अपमानित,
भूले नहीं और न भूलेंगे।
यह सच्चाई वह सच्चाई है,
सहते थे अब नहीं सहेंगे।
खेल ता रहा आबरू से अब तक,
अब ऐसा न होने देंगे।
अब हम वे तीव्र धार तलवार हो चुकीं,
अब कर देंगे तेरी छिछरी।
अब अत्याचारी से निबटने को तैयार हो चुकीं,
मातृभूमि की माता बहन और छोरी।
लड़ने को तैयार हो चुकी,
देखो अब हम सब नारी।
इज़्ज़त सबको प्यारी होती है,
चाहें बड़ी हो या छोटी।
तू अपनी इज़्ज़त को इज़्ज़त समझे ,
और हमारी को समझे पानी।
मर जाऊँ पर ग़म नहीं कुछ भी ,
पर अंत भी तेरा कर जाऊँ।
तू माने की शक्ति हमीं में,
हम जैसे एक कठपुतली।
अब हम वे बात हो चलीं,
अब कर देंगी तेरी बिखरी।
घात- घात या बात -बात ,
घात बात से निबटने की अब कर ली तैयारी।
लड़ने को तैयार हो चुकीं,
देखो अब हम सब नारी।
तुम आओ और आते जाओ ,
फिर मैं तुमको कैसे -कैसे सबक सिखाऊँ?
दिया जन्म जिसने तुमको ,
वह माता और बहन किसी की।
पर किया तूने ही इसे अपमानित,
वह तेरा अब करने नाश चली।
सिरफिरा बना हुआ फिर भी,
तेरे इस सिरफिरेपन को उतारने को ,
हर गली-हर चौराहे पर,
देख खड़ी हुईं अब हम सब सारी।
जाग चुकीं और जाग गयीं,
और जगाना है देश की घर-घर की
नारी।
समय बदला और बदल चुका,
और गुजरने वाली है इक्कीसवीं
सदी।
बदला नहीं है यह जग सारा,
लेकिन बदल चुकीं अब हम सब नारी।
टूट चुकी शर्म हया अब,
और सीख चुकीं अब होशियारी।
गुजर चुकीं हैं कई दुलारी,
अब ऐसा नहीं होने देनें वाली।
लड़ने को तैयार हो चुकी,
देखो अब हम सब नारी।
ऊपर से नीचे तक देखो,
मिलती दुश्चरित्र की ढेरी।
सफ़ेदपोश भी नहीं बचेंगे,
और बच न पायेगा कोई भी।
दिनकर जैसे खड़ी हो चलीं,
बदल चुकी है अब उसकी रौशनी।
मानोगे तुम हमें दुर्बल सा,
अब उत्साह हिम्मत हृदय में भर ली।
अंधकार गमन हो चला हृदय से,
अब उज्ज्वलित हो चली उजियारी।
जाग गयीं और जाग चुकीं हैं,
देखो अब हम सब नारी।
हुआ है चिर से चिर महान,
अब नहीं किसी की बलिहारी।
हमारे हाथ में अत्याचारी,
और इसे देखेगी दुनिया सारी।
बादल भी बरस के रुक जायेंगे,
पर अब हम कहाँ रुकने वाली?
तुच्छ पल के साथ ढह जाऊँ,
पर सुलगेगी सुलगती रहेगी यह चिंगारी।
लड़ने को तैयार हो चुकी,
देखो अब हम सब कुण्ठित मन नारी।
जाग गयीं और जाग चुकीं हैं,
देखो अब हम सब नारी।
देश अग़र बड़ी नदी है,
तो हम इससे निकलने वाली एक छोटी झरनी।
फबक -फबक कर उमड़ चली,
और चली-चली और चली चली।
तूने छुआ या दूषित किया ,
तब हम तेरा करने नाश चलीं।
कार्यरत हम संस्थानों में ,
चाहें निजी हो या सरकारी।
देखोगे तो देखेंगे तुमको,
जैसा करोगे वैसा अब हम सब करने वाली।
जाग गयीं और जाग चुकीं हैं,
देखो अब हम सब नारी।
पालित किया है जिसने ऐसे,
मैं उनके प्राणों की प्यारी।
दुःख सहे हैं उन ने अब तक,
और दुःख नहीं देने वाली।
दिया कष्ट इनको तुमने,
अब हैं हम विराम लगाने वाली।
तेरे घर में भी माता बहन,
और वह भी तो है एक नारी।
वाक़िफ़ है तो ठीक सही,
अगर नहीं तो अब हम सब याद दिलाने वाली।
लड़ने को तैयार हो चुकी,
देखो अब हम सब नारी।
जग एक , देश प्रथक -प्रथक,
पर संसार में एक सी स्थिति है नारी।
जाग गयीं और जाग चुकीं हैं,
देखो अब हम सब नारी।
लड़ने को तैयार हो चुकीँ,
देखो हम सब कुण्ठित मन नारी।
कुण्ठित मन अब सब नहीं रहेंगी,
अब हो जायेंगी प्रफुल्लित मन नारी।
जाग गयीं और जाग चुकीं हैं,
देखो अब हम सब नारी।
सर्वेश कुमार मारुत