किस्मत ना तो वरदान है,
और ना ही यह फ़रमान है।
जो ज़िए इसके सहारे,
रास्ते ग़ुमनाम हैं।
अनज़ान यूँ छोर हैं,
ख्वाहिशों के शोर हैं।
हाँकते फ़िरते मग़र वे,
समझते की हम नूँर हैं।
चल पड़े वे दो डगर,
ज़नाब कह दिए की रास्ते तो दूर हैं।
जो ज़िए इस ‘मत’ सहारे,
वे ज़िन्दगी की धूल हैं।
किस्मत का मतलब यह नहीं।
कि कर्म कोई ना करें।
मान ले यह हम सभी,
हम नहीं ,बस हम नहीं।
इसलिए इसके सहारे,
बैठना बक़बाज़ है।
सर्वेश कुमार मारुत