shabd-logo

मेहरवांनी जानिये क्या बात है,

15 फरवरी 2016

164 बार देखा गया 164
featured image

मेहरवांनी  जानिये  क्या बात है,

 मेरी साँसे है सा तुम्हारा साथ है। 


 तेरे   मेरे   बीच   में   हैं   दूरियां,

 अजनबीं सा अनछुआ एहसास है। 


मन से ख्यालों से जुदा होते नहीं,

तू   जागते  सोते  हमारे पास  है। 


ऐ काश मिल जाये हमारी ज़िन्दगी,

अभी तो बेरुखी,तल्खियाँ है प्यास है। 


बंद आँखों में भी तुम हो रूबरू,

तू गुनगुनाती धड़कनो का साज है।  

1

मार्मिक प्रसंग

3 नवम्बर 2015
0
2
0

रमेश अपने बूढ़े पिता को वृद्धाश्रम एवं अनाथालय में छोड़कर वापस लौट रहा था।उसकी पत्नी ने उसे यह सुनिश्चत करने के लिए फोन किया कि पिता त्योहार वगैरह की छुट्टी में भी वहीं रहें और घर ना चले आया करें !रमेश पलट के गया तो उसने देखा कि उसके पिता वृद्धाश्रम एवं अनाथालय के प्रमुख के साथ ऐसे घुलमिल कर बात कर

2

कोई तो है हमको अपना सा लगता है

15 फरवरी 2016
0
3
0

कोई तो है हमको अपना सा लगता है,लेकिन फिर सच भी सपना सा लगता है। यूँ तो दिल की गहराई में तुम बसते हो,क्यों सौ बार तुम्हें छूने को दिल करता है। कहने को कुछ भी शेष नहीं पर हलचल है,जीने की ख्वाहिश है मरने को दिल करता है। मैं बूंद-बूंद प्यासा सागर,आचमन  करूँ,भावों के गंगाजल पीने को मन करता है। तुम मधुर-म

3

मेहरवांनी जानिये क्या बात है,

15 फरवरी 2016
0
2
0

मेहरवांनी  जानिये  क्या बात है, मेरी साँसे है सा तुम्हारा साथ है।  तेरे   मेरे   बीच   में   हैं   दूरियां, अजनबीं सा अनछुआ एहसास है। मन से ख्यालों से जुदा होते नहीं,तू   जागते  सोते  हमारे पास  है। ऐ काश मिल जाये हमारी ज़िन्दगी,अभी तो बेरुखी,तल्खियाँ है प्यास है। बंद आँखों में भी तुम हो रूबरू,तू गुन

4

सुख और दुःख

15 फरवरी 2016
0
2
1

5

सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो

15 फरवरी 2016
0
3
0

सफ़र  में  धूप  तो  होगी  जो  चल  सको तो चलो,सभी  हैं  भीड़  में  तुम भी निकल सको तो चलो। इधर  उधर  कई  मंज़िल  हैं  चल  सको  तो  चलो,बने   बनाये   हैं   साँचे  जो  ढल  सको  तो चलो। किसी    के    वास्ते    राहें    कहाँ    बदलती   हैं,तुम  अपने आप को ख़ुद  ही बदल सको तो चलो। यहाँ    किसी    को    को

6

सोंच वहीं है

15 फरवरी 2016
0
3
1

जब ज्ञान भी न था मुझे इस बात का, कि क्या बुरा और क्या भला है | मैं हो गई थी किसी की सुहागन,  छोड़ कर जा चुकी थी | मैं जहाँ खेली थी बचपन, मेरे प्यारे बाबुल का वो घर वो आँगन, चाहती थी मैं भी करना मित्रता जिन किताबो से, वो किताबे बन गई थी ख्वाब मेरा ख्वाबो में, बस जानना चाहा था इतना, मेरी इस हालत का दोष

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए