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मेरा आत्मसम्मान

6 नवम्बर 2021

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सारे रिश्तों को 
ढोते ढोते 
कभी जागते कभी सोते
खुद को ही भूल आई हूँ...

भूल आई हूँ खुद से मिलना
भूल गई सजना और सवरना
कपटी हँसी रोज हँसी 
पर खुद के लिए हँसना भूल आई हूँ...

बात बिना बात हो गई आदि
तानों को सुनने की
पर कर सकूं प्रतिकार
वो हिम्मत भूल आई हूँ...

बच्चों के लिए तो बोलना सिखा
परिवार के लिए झुकना सिखा
पर अपने आत्मसम्मान के लिए
मैं लड़ना भूल आई हूं...

आँखो से अश्को को रोका
उफ्फ , आह का उलाहना छोड़ा 
सबकी सुनती सबकी करती
मैं जीना भूल आई हूँ
क्यों मैं खुद को ही भूल आई हूँ...

"मीनाक्षी पाठक"©️®️
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रचनाएँ
भावों की अभिव्यक्ति
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भावों को शब्दों में ढालने का सबसे अच्छा माध्यम है कविता । कविता में आप प्यार ,दर्द ,खुशी और गम सब बयां कर सकते है । कविताओं को लिखने के लिए शब्दो की सीमा नही होती । कम से कम और ज्यादा से ज्यादा शब्दो मे आप अपनी बात कह सकते है ।

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