मेरी खट्ठी मीठू डायरी
आ गई न लेट लतीफ सुकून अपनी खट्ठी मीठू डायरी से मिलने
सोची चलो मिल लेती हूँ अपनी ख़ट्ठी मीठू डायरी से।
मुझे पता था की कोई तो मेरा इंतजार कर रहा होगा फिर सोची मुझे खुद इंतजार करना अच्छा नही लगता है तो अपनी खट्ठी मीठू डायरी को कैसे इंतजार करा सकती हूँ।
इसलिए तो आ गई दौड़ते भागते उछलते कूदते अपनी खट्ठी मीठू डायरी से मिलने।
आज पता है एक छोटी सी बच्ची को देख कर मैं भी बच्ची बन गई।
आज उसकी माँ कपड़े डाल रही थी बरामदे में और वो भी कपड़े डाल रही थी एकदम से छोटी सी बच्ची थी और पता है उसे देख कर मैं भी अपने बचपन के दिनों में जा कर वापस आई।
मेरी माँ कहती थी मैं भी घर का काम खूब करती थी अपनी बुआ दादी के साथ।
मुझे हंसी आ गई सच्ची में बचपना बचपना होता है न वो शहर और गाँव देखता न अमीर गरीब।
सच्ची कहा न ख़ट्ठी मीठू बोलो न मेरी बातों से तुम भी अपने बचपन में चली गई न।
अच्छा अब चलो आज की बातें यँही तक अब कल की बातें कल के साथ है न।
अच्छा चलो शुभरात्रि मेरी ख़ट्ठी मीठू डायरी और मेरे प्यारे पाठकों को भी शुभरात्रि।
अच्छा आप सब भी पढ़ कर सो जाना समझ गए या नही।
चलो अब कल आऊंगी मिलने पक्का बाय बाय शुभरात्रि।
सुकून