मेरी ख़ट्ठी मीठू डायरी
लो आ गई न तेरी लेट लतीफ सुकून तुमसे मिलने अरे क्या करूँ इधर उधर उछलते कूदते आ ही जाती है लेट लतीफ सुकून मिलने अपनी ख़ट्ठी मीठू डायरी।
बिना मिले सुकून को भी चैन कहाँ आता है।
अरे पता है खट्ठी मीठू डायरी बताई थी एक दिन पार्क में एक बच्ची गिर गई थी और खून गिरने लगा था और मैं दुप्पटा दे दी थी उस बच्ची के माँ के पास नही था क्यों की अब लोग दुप्पटा कहाँ रखते हैं अब जींस टॉप बिना दुप्पटे के ड्रेस पर दुप्पटा कहाँ आएगी लेकिन शायद आज भी हर एक चीज की अहमियत होती है।
जिंदगी अच्छा खैर छोड़ो सबकी अपनी सोच अपनी जिंदगी किसी के बारे में कहने से क्या फायदा लेकिन हम ये मानते हैं हमारी जिंदगी में हर चीज की अहमियत होती है।
अच्छा दुप्पटे की इति बड़ी बात चली की मेरी छोटी बात गुम हो गई।
पता है आज आज जिस बच्ची को गिरी थी उसे उठाये थे और अपने दुप्पटे से उसका खून पोछे न आज रास्ते में उसकी मम्मी मुझे मिली और मुस्कुराते हुए धन्यवाद दी पता है।
मुझे लगा अरे वाह उन्हें याद हूँ मैं सच्ची में खट्ठी मीठू मैं दिनभर उसी बारे में सोचती रही की इतनी छोटी सी बात के लिए वो मुझे याद रखी मैं भी न कपड़े की परवाह की न खुद को दौड़ के करके उस बच्चे के लिए मैं उसे गोद में ले ली।
अच्छा अब चलो अपनी खुशी अपनी खट्ठी मीठू को बता दी अब सुकून को सुकून आ गया।
अच्छा अब चलो सोते हैं अब मुझे नींद आ रही है चलो शुभरात्रि।
और हमारे पढ़ने वाले प्यारे प्यारे पाठकों को भी शुभरात्रि
अब कल मिलेंगे कल की मुलाक़ात के साथ।
सुकून