हालत तो देख जाते एक बार आ कर, घायल से लौटे हैं ,तेरे शहर में जा कर. इक झलक का एहसान कर जाते गर ,मरहम सी बन जाती दिल में समा कर. मन की परेशानी का कोई तो हल कर, बिखरे हैं जज्बात ,रखे कहाँ छुपा कर. महफिल का न हो कोई असर हम पर, मिलते हैं यूं तन्हाई से खिलखिला कर. करेंगे दुआ जब भी गिरे तारा टूट कर ,महफूज