रचना की आँखों मे आज बहुत सुकून था, क्यू की वो जल्द ही अपने पैरों पर खडी होने वाली थी.
रचना अपना घर छोड़ मुंबई आई थी. क्यू की उसके माता पिता की मृत्यु के बाद उसकी चाची उसकी शादी कुछ पैसों के लिए एक अधेड़ उम्र वाले के साथ करना चाहती थी.
रचना के घर मे बस उसकी चाची उसे पसंद नहीं करती थी, लेकिन चाचा और छोटी बहन मीनू हमेशा साथ देते थे.
और इसीलिए जब उसकी चाची ने उसकी शादी कराना चाहा तो उसके चाचा ने विरोध किया पर, खुद को जला कर मार दूंगी और मीनू को भी ये धमकी दे दे उसकी चाची उसके चाचा को चुप करा देती थी.
कोई रास्ता ना मिल पाने की वजह से एक दिन उसके चाचा ने उसे मार्केट जाने के बहाने से थोड़े बहुत पैसे देकर सुल्तानपुर से मुंबई भेज दिया.
ताकि वो ये सब से बच जाए.
रचना खिड़की के पास खड़े खड़े ये सब कर शिव जी और अपने चाचा का धन्यवाद कर सोने चली गई.
यहा अनुज भी मन ही मन मुस्कराते हुए खाना खा कर सोने चला गया.
आज कविता के ऑफिस का पहला दिन था, और अंकिता ने उसे अपनी scooty से समय पर ऑफिस छोड़ दिया.
ऑफिस मे सभी कविता के साथ बहुत लोगों ने जॉइन किया था और अब उनकी ट्रेनिंग भी शुरू होने वाली थी.
एक सप्ताह ट्रेनिंग खत्म होने के बाद सभी को उनके पोस्ट के हिसाब से काम दिया गया, कविता को RM (Relations Manager) की पोस्ट के लिए चुना गया था.
कविता को भी उसका काम जम रहा था, शुरुवात मे थोड़ी बहुत दिक़्क़त हुई थी पर समय बीतते बीतते उसे काम भी आ गया था.
अनुज भी बहाने बहाने से ट्रेनिंग रूम मे जाया करता था.
जब उसे वहां कुछ काम नहीं होता था फिर भी...
वो तो बस वहाँ उसे ही देखने जाता था,
जिसकी आवाज से प्यार मे पड़ा अनुज, उसे उसकी सूरत से मतलब नहीं था, उसे तो बस उससे प्यार हो गया था.
अनुज जो बस ऑफिस मे अपने मतलब से काम रख अपने काम मे व्यस्त रहता था, वो आज ऑफिस में यहां वहां घूमता रहता है, हाँ लेकिन अपना काम समय से जल्दी पूरा कर के. क्यू की अनुज का पहला प्यार उसका काम था बाकी सब दूसरे नंबर पे था..
कुछ दिनों बाद अनुज ने कविता को अपने कैबिन मे बुलाया.
Good morning sir, अपने बुलाया, कविता ने अनुज के कैबिन मे आकर पूछा. हाँ बैठो कविता.
मेरे पास तुम्हारे लिए कुछ था, ये बोल कर अनुज ने अपने बैग से कुछ निकाला जो गिफ्ट जैसे पैक किया हुआ था.
सर मेरे लिए, sorry sir पर मैं, मैं मैं बाद मे करना पहले गिफ्ट खोलो.
कविता ने जैसे ही गिफ्ट खोला उसके चेहरे पर खुशी और प्रश्न वाले भाव साथ मे झलकने लगे.
वो वही किताब थी जो कविता ने पिछले महीने ली थी और ना जाने कहां रख दी थी.
और उसमे उसका बायोडाटा भी था.
अनुज ने कहना शुरू किया, तुम्हें गिफ्ट कैसा लगा, बहुत अच्छा सर पर ये आपको, ये मुझे कुछ दिनों पहले एक कैफे में मिली थी.
अनुज ने कविता को सारी बात बताई और कविता और अनुज की दोस्ती की शुरुवात भी.
ये सब मुमकिन हो पाया था '' दिव्य प्रकाश दुबे जी'' की वजह से, मतलब उनकी किताब '' अक्टूबर जंक्शन '' की वजह से.
दोस्ती की शुरुवात की तो हो चुकी थी, अब आगे देखना है कि अनुज और कविता की जिंदगी मे आगे क्या होने वाला है.......