“मुक्त काव्य गीत ”परिंदों का बसेरा होता है प्रतिदिन जो सबेरा होता हैचहचाहती खूब डालियाँ हैं कहीं कोयल तो कहीं सपेरा होता हैनित नया चितेरा होता है पलकों में घनेरा होता हैपरिंदों का बसेरा होता हैप्रतिदिन जो सबेरा होता है॥ हम नाच बजाते अपनी धुन मानों थिरकाते गेंहू के घुन प्र