सफलता की राह में नकारात्मक सोच किसी रोग से कम नहीं I किसी विद्यार्थी को कोई विषय समझ नहीं आता ये एक सामान्य बात है लेकिन ये बात मन में बैठ जाना कि वह विषय तमाम कोशिशों के बाद भी समझ नहीं आएगा, ऐसी धारणा नकारात्मक कहलाएगी I ऐसी सोच व्यक्ति को इतना निराश कर देती है कि सफलता कोसों दूर नज़र आती है I नकारात्मक विचार मन में जितने अधिक होंगे अवसाद उतनी ही तेजी से हम पर हावी होगा । अगर आप भी अक्सर ऐसे नकारात्मक भावों से घिर जाते हैं तो अपने भीतर छोटे-छोटे बदलाव करें और खुद को सकारात्मक दिशा में ले जाएँ।
विचारकों ने समस्याओं को महज़ एक दौर माना है I जीवन में कितनी ही बार ये दौर आते हैं और चले भी जाते हैं I कोई समस्या बड़ी हो सकती है लेकिन आपके वजूद से बड़ी कभी नहीं हो सकती I विचार करें तो आप पाएंगे कि बड़ी से बड़ी खुशियों के दौर गुज़र जाते हैं तो फिर मुश्किलों का दौर क्यों टिका रह जाएगा ?
असफल होने पर अलग-अलग लोग आपकी भिन्न-भिन्न कमियां गिनाएंगे, लेकिन ऐसे समय में भी अपने व्यक्तित्व की अच्छाइयों की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए I हमारे काम में कमी कहाँ रह गई, ये हम ही बेहतर जानते हैं और इसीलिये इसका हल भी हमारे ही पास होता है I बहुत सी कमियां हो सकती हैं लेकिन उनमें भी आपकी कोई एक अच्छाई फिर से उठकर खड़े होने का आधार बन सकती है I
अगर किसी समस्या का हल है तो चिन्ता किस बात की, और यदि हल ही नहीं है तो भी चिन्ता करके क्या करेंगे I ऐसे में सिर्फ चिन्तन ही क्यों न कर लिया जाए कि करना क्या है I
महान व्यक्तित्वों की जीवनी पढ़ना हमारे भीतर सकारात्मक विचारों का संचार करता है I योग और हल्का-फुल्का व्यायाम भी हमारे नकारात्मक विचारों को बहुत कम कर देता है I वो लोग जो हमें अच्छी तरह से जानते हैं और जो हमें सफल देखना चाहते हैं, उनसे मिलना, बातें करना हमारी सोच को सकारात्मक बनाता है I
नकारात्मक विचार रखना भी बस एक आदत है, ज़रा सी मुश्किल में घबरा जाना, निराश हो जाना, और ये मान लेना कि नहीं, अब कुछ नहीं हो सकता I वरना परीक्षाएँ तो हमारे जीवन की खुशबू हैं I इन्हीं में तो रोमांच है I कितने शौक़ से आप झूला झूलते हैं, सिर्फ रोमांच के लिए ही ना ! सफलता-असफलता भी जीवन का झूला है, कभी ऊपर जाएगा और कभी नीचे आएगा और जीवन की इसी गति में ही आनन्द है I ठहरे झूले में तो किसी को हँसते-खिलखिलाते नहीं देखा I