यूँ तो अक्सर किसी के जाने के बाद ही उसकी याद आती है लेकिन दुनिया में कितने ही सितारे हमारे दिलों की ज़मीं’ पर हरदम जगमगाते रहते हैं । हिन्दी फ़िल्मों की ख़ूबसूरत और मशहूर अभिनेत्रियों में से एक ऐसी ही अदाकारा थीं नादिरा । 5 फ़रवरी 1932 को इज़राइल में एक यहूदी परिवार में जन्मी थीं फ़रहत एज़ेकेल नादिरा जिन्होंने साठ से भी अधिक फ़िल्मों में अपने बेजोड़ अभिनय की छाप छोड़ी । अभिनेत्री नादिरा अपने समय से कहीं आगे थीं। लाजवाब ख़ूबसूरती और शाही अंदाज की शख़्सियत रखने के बावजूद उन्होंने उस दौर में खलनायिका बनना पसंद किया था, जबकि अन्य नायिकाएँ इस तरह की भूमिकाएँ करने से घबराती थीं।
उनके एक्टिंग करियर की शुरुआत 1952 में बनी महबूब ख़ान की फ़िल्म 'आन' से हुई, जिसमें उन्होंने एक बिगडैल राजकुमारी की भूमिका निभाई थी। इस फ़िल्म में दिलीप कुमार उनके नायक थे। यह अभिनेत्री नादिरा की कामयाबी ही मानी जाएगी कि उन्हें हर बड़े हीरो के साथ काम करने का अवसर मिला। नादिरा दिलीप कुमार के साथ आईं फ़िल्म 'आन’ में और देव आनन्द के साथ उन्होंने फ़िल्म की 'पॉकेटमार' । राजकपूर ने उन्हें फ़िल्म 'श्री 420' में 'माया' के अलग अंदाज वाली भूमिका दी।
सन 1954 में गायक-अभिनेता तलत महमूद के साथ दो फ़िल्मों 'डाक बाबू' और 'वारिस' में भी काम किया। ये फ़िल्में कामयाब रहीं। ख़ास बात यह थी कि इन फ़िल्मों में नादिरा ने तलत महमूद के साथ कई गीत भी गाए और अपनी आवाज़ से लोगों को दीवाना बनाया। इस तरह नादिरा ने तीस वर्षों तक फ़िल्मों में लगातार काम किया। उन्होंने अपने दौर के तमाम मशहूर अभिनेताओं के साथ काम किया, उनमें मोतीलाल, आगा, अनवर हुसैन, जयराज, बलराज साहनी, , उत्पल दत्त, दलजीत, धर्मेन्द्र, राजेश खन्ना, विनोद खन्ना, मिथुन चक्रवर्ती और ऋषि कपूर आदि उल्लेखनीय हैं।
इसके बाद उन्होंने 'श्री 420' (1956), 'दिल अपना और प्रीत पराई' (1960), 'पाकीज़ा' (1971), 'अमर अकबर एंथनी' (1977) आदि फ़िल्मों में भी यादगार अभिनय किया । उन्होंने इस्माइल मर्चेट की एक अंग्रेज़ी फ़िल्म 'काटन मैरी' (1999) में भी काम किया था।
अपने बेजोड़ अभिनय के बल पर नादिरा फ़िल्म के परदे पर तो ज़्यादातर ‘खलनायिका’ बनीं लेकिन दर्शकों के दिलों में ‘हीरोइन’ बनकर रहीं I 9 फरवरी सन 2006 को नादिरा इस नश्वर रंगमंच को अलविदा कह गयीं ।