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भोजेश्वर मंदिर

27 फरवरी 2016

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भोजेश्वर मंदिर अथवा भोजपुर शिव मंदिर मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से 32 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। रायसेन ज़िले की गोहरगंज तहसील के औबेदुल्लागंज विकास खण्ड में स्थित प्राचीन काल के इस मंदिर को यदि उत्तर भारत का सोमनाथ भी कहा जाये तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। भोजपुर गाँव में पहाड़ी पर यह विशाल शिव मंदिर स्थापित है। भोजपुर मंदिर तथा उसके शिवलिंग की स्थापना धार के प्रसिद्ध परमार राजा भोज द्वारा की गई थी। अत: राजा भोज के नाम पर ही इस स्थान को भोजपुर और मंदिर को 'भोजपुर मंदिर' या 'भोजेश्वर मंदिर' कहा गया। बेतवा नदी के किनारे बना उच्च कोटि की वास्तुकला का यह नमूना राजा भोज के मुख्य वास्तुविद और अन्य विद्वान वास्तुविदों के सहयोग से तैयार हुआ। मन्दिर की विशालता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसका चबूतरा 35 मीटर लम्बा है।


भोजपुर के शिव मंदिर की प्रसिद्धि यहाँ स्थापित शिवलिंग के कारण और भी अधिक है। कला और संस्कृति की दृष्टि से यहाँ की धरती प्राचीन काल से ही महत्त्वपूर्ण रही है। स्थापत्य कला में भी भोजपुर नामक स्थान पर भोजेश्‍वर के नाम से विख्यात शिव मंदिर काफ़ी महत्त्वपूर्ण रहा है, जिस कारण इसे "पूर्व का सोमनाथ" कहा गया।

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शब्द का महत्व

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इंतज़ार

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गुड़ के हैं कई गुण

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कृपया ध्यान दें...

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मित्रो  <!--[if gte mso 9]><xml> <w:WordDocument> <w:View>Normal</w:View> <w:Zoom>0</w:Zoom> <w:TrackMoves/> <w:TrackFormatting/> <w:PunctuationKerning/> <w:ValidateAgainstSchemas/> <w:SaveIfXMLInvalid>false</w:SaveIfXMLInvalid> <w:IgnoreMixedContent>false</w:IgnoreMixedContent> <w:AlwaysSh

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तेरे जाने के बाद तेरी याद आयी...नादिरा

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यूँ तो अक्सर किसी के जाने के बाद ही उसकी याद आती है लेकिन दुनिया में कितने ही सितारे हमारे दिलों की ज़मीं’ पर हरदम जगमगाते रहते हैं । हिन्दी फ़िल्मों की ख़ूबसूरत और मशहूर अभिनेत्रियों में से एक ऐसी ही अदाकारा थीं नादिरा । 5 फ़रवरी 1932 को इज़राइल में एक यहूदी परिवार में जन्मी थीं फ़रहत एज़ेकेल नादिरा जिन्

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कितने ही गीत हमारे मनमीत होते हैं ! कितनी ही बार हमारे मन में एक नयी उमंग, एक नयी तरंग जगाते हैं, जैसे थाम के उंगली हौले से हमें लिए जाते हैं, न जाने कौन से उजालों की ओर ! एक ऐसा ही गीत है फिल्म 'गाइड' का जिसके बोल हैं....'आज फिर जीने की तमन्ना है' I ऐसे नग्मात सुनकर ऐसा लगता है मानो ये उम्र और समय

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बंद आँखों से वो मंज़र देखूँरेग-ए-सहरा को समंदर देखूँक्या गुज़रती है मेरे बाद उस परआज मैं उस से बिछड़ कर देखूँशहर का शहर हुआ पत्थर कामैं ने चाहा था के मुड़ कर देखूँख़ौफ़ तंहाई घुटन सन्नाटाक्या नहीं मुझ में जो बाहर देखूँहै हर इक शख़्स का दिल पत्थर कामैं जिधर जाऊँ ये पत्थर देखूँकुछ तो अंदाज़-ए-तूफ़ाँ ह

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