एक चिड़िया...अनेक चिड़ियाँ, दाना चुगने आयी चिड़िया...गीत तो सुना ही होगा I जी हाँ, चिड़िया यानि घरेलू चिड़िया गौरैय्या जिसके लिए आज भी चूं-चूं करती आती चिड़िया जैसी कविताएँ पढ़ी जाती हैं। मार्च में विश्व गौरैय्या दिवस मनाया जाता है लेकिन घर-आंगन से गौरैय्या विलुप्त होती जा रही है। हमारे साथ रहने वाली गौरैय्या का ठिकाना ग़ायब है, वह उसे तलाश रही है लेकिन कंक्रीट के जंगल में उसे ठिकाना नहीं मिल पा रहा है। गौरैय्या, जंगल में नहीं बल्कि हमारे घरों में, हमारे साथ रहने वाली चिड़िया है। घर के आंगन में गेहूं, चावल, दालों व अन्य अनाज में घुन,पाई व कीड़े लगने की स्थिति में अनाज फ़ैलाने से ही गौरैय्या उसकी सफाई कर देती है। भोजन के टुकड़ों व चावल के साथ उन्हें पानी रखा जाता है लेकिन शहरीकरण की होड़ के कारण आँगन की मुंडेर से गौरैय्या गायब हो गई है। कोई इनकी सुख-सुविधा नहीं देख रहा है। अपार्टमेंट कल्चर के प्रभाव के चलते उसके आशियाने ग़ायब हो गए हैं। चुलबुली चिड़िया गौरैया के गायब होने से विश्व परिवेश पर चिंता व्याप्त है। ब्रिटेन के रॉयल सोसाइटी ऑफ़ प्रोटेक्शन ऑफ़ बर्ड्स ने इसे रेड लिस्ट में डाल दिया है। गौरैय्या के नर-मादा हमेशा साथ रहते हैं। सिलेटी व आसमानी रंग की चिड़िया अब घरों में फुदकती नहीं दिखाई देती। चिड़िया हमारी संस्कृति का अंग है, गौरैय्या उल्लास का प्रतीक है। इसके चित्र हमारी लोक कला के अंग हैं। लोक कथाओं व साहित्य में भी उसे स्थान मिला है। दुनिया भर में पक्षियों की लगभग आठ हज़ार प्रजातियाँ मिलती हैं। इसमें से 2060 प्रजातियाँ भारत में हैं। प्रदेश में लगभग 688 पक्षियों की प्रजातियाँ मिलती हैं। चिड़ियों की घटती संख्या के लिए ज़िम्मेदार हैं, कंक्रीट का जंगल बन रहे शहर व क़स्बे, साथ ही मोबाइल टावर जिनकी तरंगें इनकी प्रजनन क्षमता घटा रही हैं। पेट्रोल से निकलने वाला मिथाइल नाइट्रेट छोटे कीटों को नष्ट कर देता है, जो चिड़िया व चूज़ों का मुख्य भोजन है।
शहर में परिंदों के लिए पानी कौन रखता है... शायर मुनव्वर राना की ये पंक्तियाँ पक्षी संरक्षण के लिए ही कही गई हैं। संभवतः इन्हीं पंक्तियों की प्रेरणा से गौरैय्या संरक्षण अभियान व पक्षियों को दाना पानी की व्यवस्था की ज़िम्मेदारी मनीष पाण्डेय और मनीष अवस्थी की संस्था निभाती है। संस्था शहर में जगह-जगह पक्षियों को दाना चुगने के लिए बर्तन व दाना पानी रखती है। इसी क्रम में सुकवि अशोक बाजपेयी के पुत्र गौरव बाजपेई गौरैय्या संरक्षण के लिए घोंसला वितरण कर रहे हैं। उनकी संस्था संस्था 200 रुपए कीमत में परिंदों के लिए घोंसला मुहैय्या कराती है।
परिंदों के आशियानों के बिल्डर
जाने कितने हाथों ने ताजमहल है बनाया, जाने कितनों ने महलों को है सजाया लेकिन आज तक मैंने सिर्फ इन हाथों के बारे में है सुना कि इन हाथों ने अनगिनत चिड़ियों के लिए घोंसला बुना। शुभी सक्सेना की ये पंक्तियाँ परिंदों के आशियाना बनाने वाले चिरंजीलाल खन्ना के लिए हैं। चिरंजीलाल खन्ना पंद्रह साल से घोंसला बनाकर पक्षियों के संवर्धन की दिशा में काम कर रहे हैं। बैंक ऑफ़ बड़ौदा के सीनियर मैनेजर पद से वीआरएस लेकर परिंदों के लिए काम करने वाले ७२ वर्षीय चिरंजीलाल खन्ना प्रतिदिन 8 घंटे पक्षियों के आशियानों को बनाने में बिताते हैं। इसके साथ वह अच्छे संकलक भी हैं। वर्ष 1997 की एक घटना उनके जीवन में टर्निंग पॉइंट बनी। चिरंजीलाल खन्ना की पत्नी मधु खन्ना के मुताबिक घर में चिड़िया घोंसला बनाती और अंडे देती रहती। एक बार हवा के तेज़ झोंके में कुछ अंडे ज़मीन पर गिरकर टूट गए। इसके बाद दुखी चिड़िया अण्डों के आसपास बेचैन टहलती रही। इस मार्मिक घटना से चिरंजीलाल खन्ना बहुत दुखी हुए। हाथों में हुनर था, घर पर औज़ार; फल की पेटी की पटरियों से घोसले तैयार किये और घर के कई स्थानों पर लगाए। कुछ को चिड़ियों ने पसंद किया, कुछ को रिजेक्ट कर दिया। घर पर बनाए पसंदीदा घोसले, मित्रों के घर पर भी लगाए। आजाद नगर निवासी चिरंजीलाल खन्ना के इस प्रयास को सभी ने सराहा। वर्ष 2001 में बैंक से वीआरएस लेकर पूरी तरह से पक्षियों के प्रति समर्पित हो गए। खन्ना जी प्रतिमाह हज़ार रूपी खर्च कर दर्ज़न भर घोसले बनाते हैं और निशुल्क बांटते हैं। घोसलों की डिमांड नोट कर लेते हैं, घोंसला बन जाने पर उसे फ़ोन कर या घर जाकर घोंसला फिट कर देते हैं। एक घोंसला लगभग 60-70 रुपए की लागत से तैयार किया होता है। अब तक कानपुर समेत दर्ज़न भर अन्य शहरों में उनके बनाए लगभग 900 घोसले लगे हैं।