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नाली में रेंगते कीड़ो से ज्यादा कुछ नहीं।

15 नवम्बर 2021

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लखीमपुर खीरी राजनितिक पर्यटन हो गया है?

या लखनऊ से सियासत का पतन हो गया है??

माननीय उपमुख्यमंत्री जी के काफिले में से एक गाड़ी सीधे किसानो को रौंदते हुए निकल जाती है जिसमे 6 किसानो की मौत और 12 के करीब घायल बताये जा रहे हैं शायद, पर ये तो कोई इतना बड़ा कांड नहीं था की मुख्यमंत्री जी की नींद ख़राब कर दी जाये? फिर इतना बावेला मचाने की जरुरत क्या थी?

जो मर गए उनका पोस्टमॉर्टम करा के श्मशान और जो घायल हैं उनको जिला अस्पताल भिजवा देना था फिर विपक्ष को इतना नौटंकी करने की जरुरत क्या थी? मेरी तरह कम समझवाला व्यक्ति जब इसको इतनी आसानी से सलटा सकता है तो उनको क्या हुआ मरने वालों में कोई विपक्षी दलों का तो नहीं था न!! 

फिर?????

जब प्रियंका गाँधी को पता था की हाथरस केस में राहुल गाँधी को हाथरस जाते हुए रोक दिया गया था और उनके द्वारा जबरदस्ती करने पे उनको धक्का मार के गिरा भी दिया गया था तो फिर उनको जाने की जरुरत क्या थी लखीमपुर खीरी, और अगर जानबूझकर वही गलती दुबारा करेंगी तो यही होगा, धक्का भी खाना होगा और हाउस अरेस्ट भी होना होगा है चाहे दोषी खुलेआम घूम ही क्यों न रहा हो। अब चाहे जतिन प्रसाद हो, चंद्रशेखर हो ,सतीश चंद्र हो, अखिलेश यादव हो या फिर संजय सिंह हो सबके लिए संविधान बराबर है सिवाय उ.प्र. पुलिस के।। 

कोई रियायत नहीं किसी के साथ नहीं !!

ये गुस्सा......

पर मुख्यमंत्री जी बताईये तो क्या किसानो को कुचलने वाले कार में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा के पुत्र नहीं थे अब भगवान के लिए ये मत कह दीजियेगा सर की जाँच के बाद पता चलेगा। 

आपके ही मंत्रालय के दो-दो मंत्रियों ने किसानो से कहा था ना की अगर हम अपनी पे आ गए तो तुम आंदोलन करना भूल जाओगे, तो क्या? हम ये समझ लें की अब आप लोग अपनी पर आ गए हैं ?

अब हमे बोलना बंद करना पड़ेगा नहीं तो गोली और कार से टक्कर खाने को भी तैयार रहना होगा? या कोई गुंजाईश की उम्मीद है अभी भी?

और हाँ आप भी तो कहते ही रहते हैं की ठोक देंगे, बजा देंगे आदि आदि, सर ये सरकारों की भाषाएँ नहीं हैं ये तो गुंडों की बोलियां है ये शब्द अगर उन (गुंडों) के लिए ही बचा के रखे तो अच्छा होगा। 

सर मरने वाले किसानो में कौन-कौन थे और उनकी उम्र क्या थी शायद आपने पता नहीं किया होगा, क्यों के जब से ये मामला आया है तब से तो आप लोग किसी खास को बचाने में लगे हैं और अगर आपको पता होता तो सच मानिये सर अतड़ियां निकलकर मुँह में आ गई होती, चलिए कोई बात नहीं मै बता देता हूँ आपको

गुरविंदर उम्र १९ साल, लवप्रीत उम्र २० साल एक ३५ एक ४५ और दो ६० और ६२ साल के थे, आपको क्या लगता है १९ साल के गुरविंदर और २० साल के लवप्रीत की जरुरत नहीं थी इस देश को, मंत्री जी के बेटे से कम उपयोगिता थी उनकी आपकी नजर में सर। 

उनके साथ साथ उनके घरवालों के भी सपने जुड़े थे उनसे, कौन पोछेगा उनके माँ बाप के बहते आंसुओं को, कौन बनेगा उनके बुढ़ापे की लाठी? अब इतने निष्ठुर भी न बने सर, वैसे भी आप तो संत हैं श्रीमान!

और देवों की भूमि है ये उत्तर प्रदेश...

राम, कृष्ण और परशुराम ने अवतार के लिए इसी मिट्टी को चुना और इसी मिट्टी में लोट लोटकर भगवान हो गये, भृगु, सुरदास, तुलसीदास, व्यास और वाल्मीकि की भूमि से संबंध रखते हैं आप, तो कम से कम आप से तो ऐसे आचरण की उम्मीद नहीं की जा सकती कभी, तो कृपा करें प्रभु प्रदेश की निरीह जनता पर बस इतनी ही विनती है आप से। 

वो भी तो बच्चा ही था ना,था वो भी किसी का लाल ही, 

जीया कहाँ था जीवन उसने, उम्र थी उन्नीस साल ही! 

सपना भी तो देखा होगा, और करना होगा पूरा बाकी,

ठोक नही क्यों देते गोली, तुम खुद दोषी के भाल ही!!

मै समझ नहीं पाता हूँ की आपके गुस्से को तब क्या हो जाता है जब उन्नाव में एक बिटिया का बलात्कार करके आपका ही राजदरबारी उसे बेच देता है सरेआम बाजार में?

क्यों नहीं फटता आपका गुस्सा जब हाथरस में एक बिटिया को बलात्कार के बाद उसके हाथ-पैर तोड़कर उसका जीभ काट दिया जाता है ताकि वो बोल ना सके?

सर जब वो पुलिस को मिली न तब वो बोल नहीं सकती थी हाथ पैर नहीं हिला सकती थी सारा शरीर उसका लकवा ग्रस्त था उसकी लाचारी को महसूस करने की कोशिश किया कभी आपने, उसके बाद आनन फानन  में पुलिस ने उसका अंतिम संस्कार कर दिया उसके ही खेतो में, पता है आपको उसका अंतिम संस्कार उसका दूसरा बलात्कार था असल में जिसकी जिम्मेदारी आप पर है बहुत घृणित था वो काम जो आपके नेतृत्व में पुलिस ने किया था,क्या आप को नहीं लगता है ऐसा?

क्यों फूटता नहीं आपके गुस्से का ज्वालामुखी जब उन्नाव में दुबारा किसी लड़की का बलात्कार करके उसे जिन्दा जला दिया जाता है और वो जलते हुए पुलिस थाने रिपोर्ट दर्ज करने जाती है और थाने के सामने ही दम तोड़ देती है?

शायद आपको विश्वास नहीं होगा ये लिखते हुए मेरे रोंगटे खड़े हो गए थे कहा से लाते हैं आप इतना साहस कैसे सब कुछ देखते हुए भी आप चुप रह जाते हैं ?

क्या हो जाता है आपके गुस्से को जब आपका ही महोबा का पुलिस कप्तान एक व्यापारी का मर्डर कर के फरार हो जाता है और एक साल से भी ज्यादा समय होने बाद भी पकड़ा नहीं जाता?

क्या हो जाता है जब पुलिस लखनऊ वाले विवेक तिवारी को चौराहे पे गोली मार देती है और कानपूर वाले मनीष गुप्ता को पीट पीट के मौत के घाट उतार देती है वो भी वहां जहा से जोर से चीख भर देने पे आपके कानों तक उसकी आवाज पहुंच जाती, क्या उन (पुलिस) को सबिधान की अनुसूचियों से अलग रख रखा है आपने?

श्रीमान कैसे भरोसा दिलाएंगे आप उन 22 करोड़ प्रदेश वासियों को, की वो सुरक्षित हैं जबकि आपके राजदरबार के समक्ष ही पीट-पीट के मार दिया गया एक जीते जागते इंसान को? गोरखपुर में ही तो हुआ है न ये कांड और आपका द्वितीय मुख्यमंत्री कार्यालय उसे ही तो कहा जाता है न सर ?

सर एक मौत की कीमत आपकी नजर में शायद एक सरकारी नौकरी और कुछ 20-25 लाख रुपये होंगे पर उस परिवार के लिए मनीष गुप्ता बेशकीमती था असल में? जिसकी भरपाई अब संभव नहीं है ?

हमे पता था मुख्यमंत्री जी की धैर्य की कमी है आप में, पर इस दुस्साहस की सच में उम्मीद नहीं थी आपसे, आपका ये कृत्य सच में आपको योगी तो नहीं रहने देगा मेरी नजर में तो कम से कम! 

हमे पता है आप अपनी बराबरी में खड़े होने वालो को बर्दास्त नहीं कर सकते पर...

श्रीमान ये सच में मुझे नहीं पता था की आप सिर्फ कुछ चुनिंदा लोगो को ही इंसान भी समझते हैं बाकियों को नाली में रेंगते कीड़ो से ज्यादा कुछ नहीं।

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