नाम महिमा
एक संत राम नाम का सत्संग कर रहे थे । वहाँ कलयुग ब्राह्मण का रूप धारण करके गया। अपना परिचय दिया कि मैं कलयुग हूँ । इस वक़्त मेरा राज्य है । आपके लिए बेहतर यही है कि मेरे साथ बना कर रखो। जैसा मैं चाहता हूँ वैसा करो । अपनी मनमानी न करो।राम राम न जपो। दूसरों को राम नाम न जपाओ । दूसरों को राम नाम जपने के लिए प्रेरणा मत दो । इससे उनका बल बड़ता है । इससे उनकी आस्तिकता में वृद्धि होती है। मेरी चाल उन पर चलती नहीं ।मैं जो उन पर चलाना चाहता हूँ , वह मेरी बात मानते नहीं । अतैव आप यह राम नाम का प्रचार प्रसार बंद करो। स्वयं भी न जपा करो । यह आत्मा परमात्मा की बात मत किया करो । इससे मुझे नुक़सान है।
संत हाथ जोड़ कर कहते हैं - आप जो कोई भी हैं उसपर मुझे कोई फरक नहीं पडता । मैं तो बहुत ऊँचा कर्म कर रहा हूँ । मैं परमात्मा का कर्म कर रहा हूँ । अतैव मैं आपकी किसी बात का ध्यान नहीं दूँगा । मैं यह बंद नहीं करूँगा । आपने जो कुछ करना हो मेरा कर लीजिए ।
कलयुग बोला - तुझे महँगा पड़ेगा ।
अगले ही दिन जब सत्संग चल रहा था तो एक व्यक्ति आया और बोला बाबा , पिछले सप्ताह जो आपने शराब मँगवाई थी उसकी अभी पेमैंट नहीं हुई । मैं पेमैंट लेने के लिए आया हूँ । जो लोग बैठे हुए थे तत्काल उनका मन बदला । भगवान समझने वाले तत्काल शैतान समझने लग गए । आज आश्रम खाली हो गया है ।
बाबा समझ गए हैं कि यह कलयुग का खेल है ।
आज कलयुग फिर आए हैं । क्यों भाई - क्या हाल है ?
ठीक है महाराज बिल्कुल स्वस्थ । सब परमात्मा की कृपा है । जिसके राज्य में रहता हूँ उसकी अपार कृपा है । मैं राम राज्य में रहता हूँ । आपका राज्य तो आज कलयुग का है कल त्रेता का होगा फिर और बदलेगा । मेरा राज्य तो शाश्वत राज्य है ।
यदि तू मेरे साथ देगा तो कल से ही दुगने भक्त पधारने लगेंगे - कलि बोला ।
" कैसे?" संत ने पूछा । " कल ही दिखा दूँगा ," कलि ने कहा।
एक कोढ़ी मार्ग में पड़ा था," अरे कोई मुझे संत के पास ले जाओ, यदि वह कृपा करके मुझ पर पानी छिड़केगा तो कोई दूर हो जाएगा। ऐसा भगवान ने स्वप्न में कहा है।"
लोग कहें " नहीं - वह तो शराबी है, संत नहीं ।" "अरे नहीं , वह उच्च कोटि का महात्मा है।" संत ने जल छिड़का, कोढ़ ठीक, वृद्ध से सुंदर युवक हो गया ।
सत्संगी शर्मिंदा क्षमा माँगी । सत्संग में खूब भीड़ हो गई।
कलि फिर पधारे। " देख लिया मेरा प्रताप! अत: मुझ से मिल कर रहो।"
संत ने तत्काल कहा - नहीं ! हम तो प्रभु राम से ही मिलकर रहेंगे। सत्संग जारी रहेगा , ताकि लोग विषय दास, धन-मन के दास, न बन कर रहें । "
कलि क्रोधित हुआ ! तुमने देखा वहीं मेरा प्रभाव ?
संत बोले- हाँ देख लिया । निंदा स्तुति दोनों करवा ली ।पर क्या तुमने देखा राम राज्य का प्रभाव? मैं दोनों परिस्थिति में सम रहा। "
*प्रत्येक परिस्थिति में प्रभावित अर्थात् सम रहना है , प्रभु की भव्य अनुकूलता का प्रताप । समता है परमोच्च अवस्था जो राम कृपा से भक्त को उपलब्ध होती है*