अबकी बार देखा...
कुछ झुकी और अभिशप्त
खामोश सी निगाहें,
जिनमें थीं मजबूरियां
साथ साथ कातर विवशता..
जिन्हें समझा था बेवफा
बस
भरते रहें आहें........
अबकी बार देखा
वो गलियां अब सूनी थीं,
गुजारा जहां बचपन...
सम्हाला अपना होश..
और देखा अबकी बार...
होकर मजबूर उठे दो हाथ,
मिला था सहारा जिनसे..
देते हैं आशीष व दुआएं.
देखा मैंने
उनका छूटता हुआ साथ.................
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