लाल गुलाबी पीला नारंगी
सैया हमरे है सतरंगी
झकमक झकमक कुरता पहिने
मुह में पान दबाये
चाल चले है हाय मधु रंगी
कदमो की आहट सुनते ही
खट से किवड़िया कर दी बंद
गागर भरी रंग की ले कर
छुप गयी किनारे
मस्ती भरी थी आज बहुरंगी
धक्का दे के खोले दरवज्जा
उड़ेली गागर भर भर के
जब तक जब तक
नैना खोले भागी झटपट जैसे हिरणी
आफत भई आज तो अब
भागो अब तो पड़ेगी फुहार पचरंगी
दांतो में चुनरी को फांसे
गागर को बगल में दाबे
बैठी थी खटिया के पीछे
घूम रहे थे ढूंढ रहे थे
सैया जी उफ़ भृकुटि ताने मुट्ठी भींचे
सरसरसर काला पानी डाल दिया
हरजाई ने
खटिया भीगी कपडे भीगे
हुई बदरंग जैसे काली कढ़ाही रे
लथपथ हो ही गयी अब
चुटकी काट हंस रहे थे वो
रो मत प्यारी अतिसुन्दरी
पी लो अब ठंडाई रे
अरे लगा लो रंग मेरी कल्लो
की अब तो होली आई रे
होली आई रे ......
शिप्रा राहुल चन्द्र