स्थिर स्थिर सी बातें
स्थिर स्थिर से वो पल
कुछ कहा था
जो तुम भूल गए
कुछ अनकहा जो
मुझको याद रहा
ठहराव हो जैसे पानी का
हलचल थी
कुछ मद्धिम मद्धिम
टूटे थे सपने छन से
पर आवाज नहीं सुनी तुमने
किरची किरची चुभती
पाँव में
दर्द थे जो नासूर बने
अब बात करते हो
चलने की बढ़ने की
न है अब तथा
न कोई उमंग
तुम कहते हो
अब साथ चलो
पर अब सीमाएं
है जड़वंत
जब प्यार था
तब इकरार नहीं
अब इकरार है
पर चाह नही
समय ki सुदीर्घ
करवट में
वो बात नहीं ज़ज्बात नहीं
हरी टहनी अब सूख चली
नहीं फूटेंगे अंकुर अब
कष्ट को वक्त बहुतेरा था
सुख की देखो सुबह नहीं
स्थिरता अब चंचल हो
चल देगी अपनी राह पकड़
दूर गगन में होगा बसेरा
तुम पकड़ भी नहीं सकोगे
अंगूठा मेरा
इतना गतिमय वो पल होगा
गति होगी ऊर्जा की
गतिहीन होगी काया
सच्चे झूठे को छोड़ के
तब प्रभु से मिलन होगा ।
शिप्रा राहुल चन्द्र