मुस्कुराने के नहीं ढूंढते बहाने
खिलखिला के हँसते है अब
ज़िंदगी ने करवट जो ली
जीने का दम भरते है अब
ज़मी पर पैर टिकते नहीं
आसमा छूने की तमन्ना रखते है अब
राह है कांटो भरी तो क्या गम है
चुभ न जाए ये
कुछ इस तरह बच कर निकलते है अब
मन करता है जो भी अब
ख्वाहिशो का दामन
कस कर पकड़ते है अब
आँखों में ये नूर है
या तपिश है कुछ इस कदर
की सूरज को भी
पल भर में लजा सकते है अब
नहीं है शिकवा
न गिला किसी से
की परेशानियों से रंजिश रखते है अब
छा गया सुरूर कुछ इस तरह
बेकरारी है दुनिया को जीत ले
जोश ये रखते है अब
मुस्कुराने के ढूंढते नहीं बहाने
खिलखिला के हँसते है अब . .
शिप्रा राहुल चन्द्र