10 जुलाई 2015
ज़िन्दगी की आपाधापी में हम कब बदल जाते है पता ही नहीं चलता दुनिया को देखते देखते खुद को देखने का वक़्त ही नहीं मिलता ।.....atisundar
31 अगस्त 2015
हाँ रचना यहाँ मिली, अच्छी है| बधाई
13 अगस्त 2015
बहुत सुन्दर बधाई !
11 जुलाई 2015
....और अंततः आपकी रचना प्रकाशित हो गयी...बहुत बहुत बधाई ! रचना बहुत सुन्दर है !
11 जुलाई 2015
वाह वाह शिप्रा जी, जीवन के हर दृश्य को दिखा दिया आप ने महोदया, आभार
10 जुलाई 2015
manobhavon kee sundar abhivyakti hetu badhai
10 जुलाई 2015