सुप्रभात
रात की काली छाया विदा हुई उषा की कालियां चटकी उठकर अंगड़ाई ली धीरे धीरे धुंध को चीर रौशनी हुई धुली धुली दिखने लगे पेड़ ,नदिया ,पोखर विचरण करती अनेको छायाएँ नयी नयी चमक उठी ओस की बूंदें मासूम रुई की फाहे सी हवा है मस्ति में लहराती अरे हां ,ये भी तो निद्रा से जगी खिल गए पुष्प नवशिशु से मुस्काते चहक चह