इस भरे बाजार में
कितनी सारी दुकाने हैं
छोटी ,बड़ी, ढेरो
घूम रहे है फेरी वाले
कुछ जमे है फुटपाथों पर
सब करते रोजगार
बेच रहे सपनो को
लोगों का रेलमपेला है
दाये बाएं , आगे पीछे
खरीदार है झुंझलाए से
कर रहे है तोल मोल
कैसे है घबराये से
इस गर्मी के मौसम में
देखो पसीने पोछ रहे
नहीं आई बरखा रानी
पर बादल को वो कोस रहे
उमस भरी इस शाम में
एक अलग तरह का सन्नाटा
फिर भी कैसा शोर यहाँ
लगी कतारे ठेलो की
आलू वाला ,सब्जी वाला ,
आइसक्रीम और चाउमिन वाला
सिरमौर बना हो जैसे वो
ऐसा दीखता प्याज वाला
पतली सी सड़क कुछ खीज रही
सभी है विराजमान
अपना अपना झंडा गाड़े
अच्छे है बुरे है खरे है खोटे है
जुगाड़ कर रहे सभी रोज़ी रोटी का
अरे रे रे रे …………।
इतने में देखो पलक झपकते
ये रिक्शे वाले ने गाडी को
टक्कर मारी
अब तो हो हल्ला मचा हुआ
बुलाओ संतरी को
मज़ा चखाओ
देखो करता है होशीयारी
लो शुरू हो गया हल्लमगुल्ला
मारो मारो ये शोर हुआ
तब तक लग गयी कतारे
रिक्शा खड़खड़ा गाड़ी की
चो चो पो पो से शोर हुआ
घनघोर हुआ
हटा इसे अब जल्दी कर
इनको है आगे जाना
करते हो बीच सड़क
बवाल मनमाना
जोश कुछ ठंडा पड़ा
जब संतरी जी का डंडा पड़ा
तितर बितर हुई भीड़
अरे हमे क्या हम
किसी के पचड़े में नहीं पड़ते
ऐसा कह सब भागे अपने अपने रस्ते
मैं बेठी बैठी देख रही
कैसे ये उलझन सोच रही
एक छोटी सी दुकान मेरी भी
इसी भरे बाजार में
शीशा लगवाया पारदर्शी
इसके दरवाजे में
जिससे होता रहे मनोरंजन
कभी कभी जी ऊबता है अंदर
देखती रहू बाहर
सुनती रहू शोर
जब चाहू एकांत
तो डाले न कोई खलल
अकेले हूँ जब भी
बस मैं लेती रहूं
इस कोलाहल का आनंद ।
शिप्रा राहुल चन्द्र