बार बार तो मार रहे हो ...
फिर अबकी मार दिया ...
मेरी बिटिया को मार दिया ..
मेरी नन्ही को मार दिया ...
मार दिया हाय मार दिया ..
बह बह के आंसू सूख गए...
कलेजे पर पत्थर गाड़ दिया ...
हाय जालिम ने मार दिया ...
मुट्ठी भींच जाती है ...
आँखे हो उठी है विस्फारित ...
तुम हँसते हो ज़हरीली हंसी ...
फिर कहते हो उद्धार किया ...
मार दिया हाय मार दिया ...
धौकनी की तरह चलती है साँसे ...
बहते है आंसू झर झर ...
कलपती है श्राप देने को जिव्हा तुम्हे ...
इक्षा करती है भस्म कर दू तुम्हे ...
कह दू मैंने भी तार दिया ....
मार दिया रे मार दिया ..
देखो इन नरपशुओ को ....
सिरमौर बने है इस दुनिआ के ...
जी रहे है मुस्कुरा रहे है ...
अपनी धुन में है झूम रहे ...
क्यों नहीं इन्हे है नरक का डर...
अपनी करनी का पछतावा ...
कैसे समझाऊ इन्हे ...
अरे मूर्ख,कहते हो बढ़ाना है अपना वंश ....
पर वो भी तेरा खुद का अंश ...
झूए मद में जी रहे हो तुम ....
जिये जा रहे हो जिया जा रहे हो ....
आखिर क्या गलती थी मेरी नन्ही परी की .....
चमकती आँखों से देख रही थी ....
रे दुष्ट अभी तो कानो में उसकी किलकारी पड़ी थी ....
कितना प्यारे रंग थे जीवन के उसकी आँखों में ....
कैसे सुन्दर सी ताक रही थी मुझे.....
बाप होकर निर्दयी तुम ....
छीन ले गए गोद से मेरी ....
चटाई अफीम उसकी कोमल जिव्हा में ...
हाय रे हाय गाड़ दिया ....
ममता का आँचल फाड़ दिया ....
मार दिया हाय मार दिया ....
रो रो के आंसू सूख गए ....
ममता के रत्न अब ठूठ हुए ...
नहीं गिरेंगे अब आंसू ये ...
भस्म करेगी इस विलाप की अग्नि तुम्हे ...
जल जाओगे , मर जाओगे ...
फिर मिटटी में मिल जाओगे ....
तुम भी वैसे ही तड़पोगे ..
तडपेगी ये राक्षस जाति सारी...
जाओ ये माँ का श्राप है ....
स्त्री शुन्य हो जाएगी धरती सारी .....
तब रो रो के गिड़गिड़ाओगे ...
फिर वंश चलने का यन्त्र कहा से लाओगे...
तब खुद बा खुद तर जाओगे ...
तब हंसेंगे हम सब ....
कहेंगे तुम्हारा भी उद्धार किया ...
मार दिया हां मार दिया ....
शिप्रा राहुल चन्द्र