शाम के लगभग 7 बज रहे है, बारिश रुकने का नाम नहीं ले रही थी । गाड़ी का वाइपर तेजी से घूम रहा था, बरसात का तेज पानी गाड़ी के शीशे से ज़ोरों से टकरा रहा था मानो जैसे पलभर में सामने दरियाँ उभर आया हो ।
रचिता मन ही मन अफसोस कर रही थी कि आज शाम को न निकलते हुए कल सुबह ही निकलती तो अच्छा होता । परसो माँ का जन्मदिन था उसे सरप्राइस जो देना था इसलिए वापस भी आना जरूरी था । मुंबई से पुना की दूरी वैसे साढ़े तीन घंटे से ज्यादा नहीं थी और वह अपने काम की वजह से अक्सर खुद ड्राईव करते हुए कई बार पुना आती जाती थी, 4 बजे ऑफिस से निकली थी साढ़े सात-आठ बजे तक तो वो आराम से पुना पहुँच जाती, पर आज चेंबूर से वाशी पहुँचते – पहुँचते 1 घंटा लग गया, ट्राफिक कुछ ज्यादा था । जैसे ही पनवेल क्रॉस किया एकाएक तेज तूफानी बारिश शुरू हुई थी, गाड़ी 30 कि मी से तेज चला ही नहीं पा रही थी उसपर अब यह लोनावला का पहाड़ी रास्ता कल्च और ब्रेक मार कर वो काफी थक गई थी ।
बारिश जब थम गई तब सोचा कि टोल प्लाजा के बाद एक छोटी चाय कॉफी की दुकान है वही रूक कर कॉफी पीते है ।
गाड़ी को पार्क कर वह गाड़ी से उतरी और छोटी-सी दुकान के दरवाजे से ही उसने कहाँ – “भाई एक कॉफी जरा जल्दी देना”
दुकानवाला गरमा-गरम भजिया कढ़ाई से निकाल रहा था, पास में ही खड़ा एक दस-बारह साल का लड़का तेजी से बोला- मैडम जी साथ में भजिया भी दूँ ।
भजिया की महक से उसे खाने की इच्छा व भूख भी जगी ।
“हाँ, एक प्लेट देना ।“
अपनी गाड़ी की ओर इशारा करते हुए वह बोली- “वहाँ लाकर देना ।
दूसरे ही मिनिट में एक हाथ में कॉफी और दूसरे हाथ में भजिया का पेट लेकर वो लड़का सामने खड़ा हुआ ।
चेहरे से बेहद मासूम और आँखों में चमक लिए बोला – आपका ऑर्डर
गाड़ी के बोनेट की ओर इशारा करते हुए रचिता ने कहा- “यहा रखो ।
एक भजिया मुंह में डालते हुए उसने पूछा – “कितने पैसे हुए ?”
लड़का बोला – तीस रुपए
उसने पर्स में से पैसे निकाल कर दिए और वो पहाड़ी से उतरते हुए बादलों और हरियाली देखते हुए कॉफी और भजियों का स्वाद ले रही थी ।
इतने में वो लड़का बोला – मैडम जी क्या आप मुंबई से हो ?
मुस्कुरा कर वह बोली – हाँ !
तपाक से वह बोला – अच्छा है तब तो आप भी फिल्म में काम करती होंगी ? आप सब फिल्म स्टार से मिलती होगी ? क्या मुझे शाहरुख खान से मिलवाएँगी ?
उसका प्रश्न सुनते ही उसे हंसी आ गई, मुस्कुराकर वह बोली – नहीं ,मैं उसमें काम करती हूँ और मुंबई में रहने से फिल्म स्टार से मुलाक़ात नहीं होती । तुम स्कूल जाते हो ?
यह जवाब सुनकर वह मायूस होकर बोला –हाँ जाता हूँ ।
इतने में गाड़ी के पास एक मोटर साइकल आ कर रुकी। उसपर सवार युवक रचिता की ओर देखते-देखते बोला – “छोट्टू, हमारे लिए गरम-गरम चाय लेकर आओ”
छोट्टू - जी भैया, बोल कर चाय लाने दौड़ पड़ा !!
मोटर साइकल पर सवार युवक रचिता को घूरे जा रहा था । हाथ में सिगरेट, कसरती बदन, देखने का तरीका निहायत ही निर्लज्ज ।
छोट्टू ने चाय लाकर उस युवक को दी ।
रचिता ने वहाँ से जल्दी निकलना ही सही समझा ।
खाली प्लेट व गिलास छोट्टू ने गाड़ी के बोनट से उठाते ही वह गाड़ी में बैठ गई । अब उसे जल्द से जल्द पुना अपने घर जाना था । जैसे ही वह गाड़ी में बैठी वापस बारिश शुरू हो गई थी ।
मुश्किल से 15-20 मिनट ही वो आगे गई अचानक ज़ोर का झटका देकर गाड़ी बंद हो गई ।
हे भगवान !! अब ये क्या हो गया !! सोचा था अब एक सव्वा घंटे में पुना पहुँच ही जाऊँगी।
दो तीन बार गाड़ी फिर स्टार्ट करने की कोशिश की । खरर्र की आवाज होती पर गाड़ी शुरू न हो पाती ।
गाड़ी से बाहर उतर कर आसपास कुछ है क्या देखने की कोशिश कर रही थी, अचानक उसने अपनी ओर उस युवक को आते देखा जो कॉफी की दुकान पर उसे घूर रहा था ।
सुनसान सड़क, तेज बारिश उसका मन कांप उठा, वो वापस अपनी गाड़ी में जाकर बैठी और उसे अंदर से लॉक कर लिया।
तभी वह युवक उसकी गाड़ी के पास आया और उसने खिड़की के कांच को खटखटाया, रचिता बहुत घबरा गई क्या करूँ उसे तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा था।
उसने थोड़ा सा कांच खोला तभी वह युवक बोला आपकी गाड़ी खराब हो गयी है, क्या मै कुछ मदद कर सकता हूं आपकी ;
रचिता ने कहा जी नहीं शुक्रिया मै खुद मैनेज कर लूंगी।
वो युवक भांप गया कि रचिता डर रही है, उसने कहा देखिए मेडम मै एक पुलिस ऑफिसर हूँ आपको डरने की जरूरत नहीं है सुनसान रास्ता है मौसम भी खराब है,ये जगह आपके लिए ठीक नहीं है।
रचिता ने जब ये सुना तो थोड़ा सुकून हुआ कि कम से कम कोई आवारा तो नहीं वरना मैं तो बुरी तरह फंस जाती।
रचिता गाड़ी से उतरी, उस युवक ने गाड़ी को चेक किया थोड़ी देर बाद उसने गाड़ी स्टार्ट कर ही दी।
रचिता ने कहा- थैंक यू सर आपने मेरी बहुत मदद की आज।
वो युवक मुस्कुराते हुए बोला - इट इस माय डयूटी;
और वो अपनी बाइक लेकर जाने लगा।रचिता भी जल्दी से गाड़ी में बैठ गयी उसे जल्द से जल्द अब घर पहुँचना था।
थोड़े सफर के बाद रचिता अपने घर को पहुँच ही गयी, आज तो ऐसा लग रहा था घर पहुँच कर जैसे उसने कोई जंग जीत ली हो बड़ा ही एडवेंचर था आज के सफर में।
घर जाकर सबसे पहले रचिता माँ के गले लगी, दूसरे शहर में रहकर वो सबसे ज्यादा मिस माँ को ही करती थी। न जाने कितने दिन बाद आज उसने माँ के हाथ का खाना खाया था।
खाना खाकर रचिता अपने कमरे में पहुँची न चाहते हुए भी वो उस युवक के बारे में सोचने लगी।
उसे महसूस हो रहा था रियल जेंटलमेन था वो पर अब भी उसके मन मे एक बात खटक रही थी फिर उसकी घूरती नज़रें उसका क्या;
खैर मैं क्यों उसके बारे में सोच रही हूं परसों माँ का जन्मदिन है कल मुझे काफी कुछ खरीददारी करनी है परसों एक अच्छी सी पार्टी दूंगी जिसमें माँ के सभी दोस्तों को सपरिवार बुलाऊंगी।
पर मै तो सिर्फ नेहा आंटी को जानती हूं बाकी माँ के किसी दोस्त का नंबर ही नहीं है मेरे पास, नेहा आंटी को ही फोन कर देती हूं।
रचिता ने उन्हें फोन किया और कहा-" नमस्ते आंटी मै रचिता बोल रही हूं परसों माँ का जन्मदिन है तो पास के होटल में मैं उनके लिए सरप्राइस पार्टी रखने वाली हूं, आंटी आप अपनी फैमिली के साथ आइयेगा और बाकी की माँ की सहेलियों को भी कहियेगा की अपने परिवार के साथ जरूर आएं मेरे पास उनका नम्बर नहीं है प्लीज आंटी आप फोन कर दीजियेगा।"
रचिता जैसे एक सांस में ही सब कुछ कह गयी,
नेहा जी ने कहा- हाँ रचिता बिल्कुल, तू कितनी अच्छी बेटी है माँ की खुशी के लिए आज की पीढ़ी भी इतनी मेहनत करती है देख कर अच्छा लगा बेटा, मै अपने सर्कल में सबको फोन कर दूंगी और भी कुछ हेल्प लगे तो बताना झिझकना नहीं।
रचिता ने कहा- जी बिल्कुल थैंक्यू आंटी।
अगले दिन रचिता ने पूरी तैयारी कर ली माँ के लिए नई साड़ी ले आयी, जिस होटल में बुकिंग की थी वहां जाकर पार्टी के इंतजाम देखे।
रचिता अपने माता-पिता की इकलौती सन्तान थी बचपन से उसे बहुत प्यार मिला था तो वह भी अपने माता-पिता को खुशियां देना चाहती थी।
उसने पापा से कहा- पापा आप शाम को माँ को ये नई साड़ी पहनाकर बस ले आइयेगा बाकी मै सम्भाल लूंगी ।
फाइनली जन्मदिन की शाम को रचिता तो पहले ही पहुँच चुकी थी, व्हॉइट कलर के गाउन में मानों परी उतर आई हो।
धीरे धीरे सभी मेहमान भी आते गए।
जब रचिता के पापा उसकी माँ का हाथ थामकर पहुँचे अचानक आवाज़ आयी लाइट्स ऑफ,
हॉल में लगे स्क्रीन पर रचिता की माँ और पापा की ढेरों पुरानी तस्वीरें स्लाइड शो की तरह चलने लगीं
और माइक से आवाज़ आई रचिता की हैप्पी बर्थडे माँ।
रचिता की माँ की आंखें भर आयी उसने उसे गले से लगा लिया।
लाइट्स ऑन हुईं,केक काटा गया, फिर सभी मेहमानों से मिलने का और खाना खाने का दौर शुरू हुआ।
उन्हीं मेहमानों में रचिता को एक चेहरा जाना पहचाना सा लगा ब्लैक शर्ट, गठीला बदन,
ओह! ये तो वही है जिसने मेरी मदद की थी ये यहाँ कैसे कौन है ये
ऐसे कितने ही सवाल उसके मन में गूंजने लगे।
उसने नेहा आंटी से पूछा आंटी ये लड़का कौन है उन्होंने बताया ये हमारी कॉमन फ्रेंड सुमन जी का बेटा है योगेश।
रचिता ने तो कभी सोचा भी नहीं था कि इस जगह उस लड़के से मुलाकात होगी, योगेश भी रचिता की ओर देख रहा था, वो रचिता की ओर बढ़ने लगा।
रचिता पहले तो घबरा ही गयी थी कि मैं क्या बात करूँगी
योगेश ने आकर कहा- पहचाना आपने मुझे;
रचिता बोली - हां ।
योगेश ने कहा आप आज बहुत खूबसूरत लग रहीं हैं।
रचिता शर्म से लाल हो रही थी।
फिर दोनों खाने की टेबल की ओर बढ़े, योगेश ने कहा आप उस दिन बहुत डर गई थीं।
रचिता ने कहा हां जब सुनसान रास्ते पर कोई अजनबी घूरकर देखेगा डर तो लाज़मी है।
योगेश जोर से हंसने लगा ओह तो ये डर मुझ अजनबी के घूरने के कारण था।
रचिता बोली- जब इतने अच्छे ऑफिसर हो तो किसी लड़की को घूरकर देखना क्या शोभा देता है।
योगेश ने कहा- मेडम मैंने नेहा आंटी के यहां एक बार आपकी तस्वीर देखी थी तो घूरकर कन्फर्म कर रहा था कि आप वही हो या नहीं।
रचिता को हंसी आ गयी उसने कहा तो जनाब को कन्फर्मेशन लेटर मिल गया घूर कर।
दोनों ठहाके लगाकर हंस पड़े।
योगेश ने पूछा -आप मुम्बई में ही जॉब करती हैं?
रचिता ने कहा हां और आप;
योगेश बोला हां मैं भी फिर उसने रचिता को अपना नम्बर दिया कहा कि कभी जरूरत हो तो फोन कर लीजिएगा।
पार्टी खत्म हुई सब वापस आ गए।
दो दिन बाद रचिता भी अपनी कार लेकर मुम्बई वापस आ गयी।
उसने एक बार सोचा भी की क्या मेसेज करूँ कॉल करूँ फिर लगा नही चीप लगेगा।
फिर वो अपने काम में बिजी हो गयी।
रचिता की रूममेट थी स्वाति दोनों अलग अलग ऑफिस में काम करते थे, रोज शाम को वापस आकर एक दूसरे से घण्टों बातें करते।
रोज की तरह रचिता घर पहुँची देखा स्वाति रो रही थी उसने घबराकर पूछा क्या हुआ बता तू रो क्यों रही है;
स्वाति रचिता की गोद मे सर रखकर रोने लगी रचिता ने कहा बता तो हुआ क्या
स्वाति ने बताया- रचिता लम्बे समय से मेरा बॉस ऑफिस में मुझे परेशान कर रहा है, आज तो हद ही हो गयी मुझे अपने केबिन में बुलाकर गलत तरीके से छुआ उसने।
रचिता गुस्से में आगबबूला हो गयी बोली और तू चुपचाप घर आ गयी उससे ज्यादा गुस्सा मुझे तुझ पर आ रहा थप्पड़ नही मारा तूने उसे।
रचिता ने तुरंत ही योगेश को फ़ोन किया वहां से आवाज़ नहीं हेलो, रचिता बोली- योगेश जी मैं रचिता बोल रही हूं मेरी दोस्त मुसीबत में है उसने पूरी बात बताई योगेश ने कहा पहले तो आप स्वाति से कहिये की रोये नहीं दूसरी बात बिना डरे काम पर जाए और कंप्लेंट करे उसकी बाकी फिर कोई प्रॉब्लम हो तो मुझे बताइयेगा।
रचिता ने ऐसा ही किया, स्वाति को सुकून मिला जब फाइनली कंपलेंट के बाद उसके साथ गलत होना बंद हो गया।
धीरे धीरे रचिता और योगेश की बातें होती गयीं, वो अक्सर कॉफी पर भी मिलने लगे । दोनों याद करते पहली बार मिले थे तब भी रचिता कॉफी पी रही थी। कैसे दोनों अजनबी से इतने खास हो गए एक दूसरे के लिए।
योगेश ने कहा रचिता तुम्हारे इस जन्मदिन पर मै घर में सबसे बात करूंगा।
एक हफ्ते बाद ही तो रचिता का जन्मदिन था, योगेश ने कहा चलो इस बार साथ मे पूना चलते हैं फिर घर मे बात करनी है मुझे।
वही रचिता की गाड़ी , वही रचिता और वही योगेश, वही सुनसान रास्ता और वही कॉफी की दुकान वहीं पर भजिये और कॉफी ली दोनों ने, दोनों अनायास ही मुस्कुरा दिए कि जिस जगह अजनबी बनकर मिले थे, आज उसी जगह खड़ें हैं मन में हमसफ़र बनने की उम्मीद लेकर।
घर पहुँचते ही योगेश ने रचिता के बारे में बात की , उसकी माँ बहुत खुश थी कि रचिता जैसी अच्छी लड़की योगेश के जीवन में आएगी।
फेरिटेल की तरह ही रचिता के मानों सारे सपने पूरे हो गए, दोनों के घरवाले भी मान गए ,
फाइनली रचिता के बर्थडे पर उसी होटल में उसकी एंगेजमेंट हुई।
रचिता की आंखों में आंसू आ गए कि उसे उसका मनपसन्द हमसफ़र मिला। उसी होटल में रचिता की माँ की बर्थडे पार्टी में अजनबी बनकर मिले थे और आज वहीं पर जीवनभर के लिए हमसफ़र बन गए।
रचिता स्वयं को लकी महसूस कर रही थी कि जिसे चाहा वही उसे उसके हमसफ़र के रूप में मिला।