मैंने देखा ठाकुर जी यमुना तट पर कुछ निराश से खड़े हैं।(जैसा कि आप तस्वीर में देख रहे हैं)
मैंने पूछा :- क्या बात लाला ऐसे मोहडा काहें लटकाए खड़े हो ?
ठाकुर जी :- का बताऊँ बाबा।मोहें उस पार जानो है।बहुत देर है गई खड़े-खड़े। परन्तु कोई साधन नाही मिल रहयो।
मैं ठाकुर जी बात सुन मुस्कुराने लगा।
ठाकुर जी मेरी ओर देखते हुए बोले :- बाबा यामें मुस्कुराबे बाली कौन सी बात है ?
मैं :- किती देर से खड़े हो ?
ठाकुर जी :- तकरीबन आधा घंटा हैं गयो।
अब मैं जोर जोर से हसने लगा।
ठाकुर जी :- का बात बाबा पगला गए हो का ? पहले मुस्कुरा रहे थे और अब हस रहे हो ? सुनी तो थी कि बाबा लोग पालग होते हैं परन्तु आज देख भी लिया।
मैं ठाकुर जी से :- प्यारे,मोहें हसी या बात पे आ रही हैं कि तुम्हें यहाँ खड़े केवल आधा घंटा हुआ है और तुम्हारें मुख मंडल पर निराशा आ गई।
हमारा संतोष देखों जो जन्मों-जन्मों से तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहे हैं कि तुम अब आओगे हो हमें इस भव सागर से पार लें जाओगे।
इतने जन्मों से ना तो आस छोड़ी है और ना ही चहरे पर उदासी आने दी हैं।
चलों आज तुम्हें भी इस बात का अहसास तो हुआ कि प्रतीक्षा की पीड़ा क्या होती हैं।