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प्रेम काव्य

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( 1)तू मुझमें छिपी , मैं तुझमें छिपा।मैं तुझमें ही खो जाऊँ, मैं अपनी प्यास बुझाऊँ।तरसूँ मैं तो तेरे बिन, फिर और कहाँ मैं जाऊँ?तेरे रूप का ऐसा चर्चा, न शब्दों में कह पाऊँ।होंठ रसीले-नयन कटीले, फ़िर मैं कैसे बच पाऊँ?चाल तुम्हारी बड़ी अलबेली, मैं देख वहीं

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