shabd-logo

प्रेमरोग

6 नवम्बर 2015

92 बार देखा गया 92
की तेरी याद आती है की खुद को भूल जाते हैं की आंसू रुक नहीं पाते की नैना रूठ जाते हैं की तेरा ख्वाब आते ही ये लब मुस्कुराते हैं पर जब आँख खुलती है नज़ारे टूट जाते हैं न जाने क्यों मुझे तेरी हर इक पल याद आती है तेरी याद आते ही धड़कने रुक सी जाती हैं वादा था की साथ देंगे क़यामत से क़यामत तक फिर क्यों छोड़ गयी मुझको तू इन चार कदमो में

आयुष त्रिवेदी की अन्य किताबें

वर्तिका

वर्तिका

वाह! आयुष जी! सुन्दर पंक्तियाँ!

6 नवम्बर 2015

ओम प्रकाश शर्मा

ओम प्रकाश शर्मा

"वादा था की साथ देंगे क़यामत से क़यामत तक, फिर क्यों छोड़ गयी मुझको तू इन चार कदमो में".............. बहुत खूब !

6 नवम्बर 2015

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए