ठण्ड का मौसम था. शीतलहर पूरे राज्य में बह रही थी. कड़ाके की ठण्ड में भी उस दिन राजा सदा की तरह अपनी प्रजा का हाल जानने भ्रमण पर निकला था.
महल वापस आने पर उसने देखा कि महल के मुख्य द्वार के पास एक वृद्ध बैठा हुआ है. पतली धोती और कुर्ता पहने वह वृद्ध ठण्ड से कांप रहा था. कड़ाके की ठण्ड में उस वृद्ध को बिना गर्म कपड़ों के देख राजा चकित रह गया.
उसके पास जाकर राजा ने पूछा, “क्या तुम्हें ठण्ड नहीं लग रही?”
“लग रही है. पर क्या करूं? मेरे पास गर्म कपड़े नहीं हैं. इतने वर्षों से कड़कड़ाती ठण्ड मैं यूं ही बिना गर्म कपड़ों के गुज़ार रहा हूँ. भगवान मुझे इतनी शक्ति दे देता है कि मैं ऐसी ठण्ड सह सकूं और उसमें जी सकूं.” वृद्ध ने उत्तर दिया.
राजा को वृद्ध पर दया आ गई. उसने उससे कहा, “तुम यहीं रुको. मैं अंदर जाकर तुम्हारे लिए गर्म कपड़े भिजवाता हूँ.”
वृद्ध प्रसन्न हो गया. उसने राजा को कोटि-कोटि धन्यवाद दिया.
वृद्ध को आश्वासन देकर राजा महल के भीतर चला गया. किंतु महल के भीतर जाकर वह अन्य कार्यों में व्यस्त हो गया और वृद्ध के लिए गर्म कपड़े भिजवाना भूल गया.
अगली सुबह एक सिपाही ने आकर राजा को सूचना दी कि महल के बाहर एक वृद्ध मृत पड़ा है. उसके मृत शरीर के पास ज़मीन पर एक संदेश लिखा हुआ है, जो वृद्ध ने अपनी मृत्यु के पूर्व लिखा था.
संदेश यह था : “इतने वर्षों से मैं पतली धोती-कुर्ता पहने ही कड़ाके की ठण्ड सहते हुए जी रहा था. किंतु कल रात गर्म वस्त्र देने के तुम्हारे वचन ने मेरी जान ले ली.”
शिक्षा:-
मित्रों! दूसरों से की गई अपेक्षायें अक्सर हमें उन पर निर्भर बना देती है, जो कहीं न कहीं हमारी दुर्बलता का कारण बनती है. इसलिए, अपनी अपेक्षाओं के लिए दूसरों पर निर्भर रहने के स्थान पर स्वयं को सबल बनाने का प्रयास करना चाहिए