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रामराज्य : आशुतोष राणा की कलम से.. 2

27 मार्च 2023

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मंथरा के कथन को सुनकर कैकेयी ने एक भेदक दृष्टि उसपर डाली और एक विराम के बाद बोलीं- मंथरे, तब तो मुझे स्वयं ही सिंहासन पर बैठ जाना चाहिए ? अच्छा होगा मैं राजभवन की अपेक्षा राजसभा से ही सम्पूर्ण तंत्र को नियंत्रित करूँ, और अपने बढ़े हुए प्रभाव का प्रत्यक्ष सुख भोगूँ ?
क्या पता राजमाता होते हुए कभी मेरा पुत्र मेरी ही किसी आज्ञा की अवहेलना कर दे और मैं उसके प्रति रोष से भरकर उसका नाश कर दूँ ? क्या कहती हो ? मुझे महाराज से स्वयं के लिए ही ये राजपाठ माँग लेना चाहिए ?
क्योंकि जब मुझे ही अपनी इच्छाओं को पूरा करना है ? अपने प्रभाव को बढ़ाना है ? तो प्रभावशाली राजमाता होने से अधिक लाभदायक शक्तिसम्पन्न राजा होना होगा ?
मंथरा ने अचकचा कर कहा ये कैसे सम्भव है ? ये कभी हो ही नहीं सकता। कैकेयी ने भी उसी स्वर में कहा- तो फिर ये भी सम्भव नहीं है मंथरा, ये भी कभी नहीं हो सकता।
कैकेयी का कल्याण, उसका यश राजमाता होने में नहीं, अपितु राम की माता होने में है। मैंने अपने पुत्रों को, अपने परिवार को कभी खंडित दृष्टि से नहीं देखा, मेरे लिए मेरे पति, मेरे पुत्र, मेरा परिवार उस अखंड ब्रह्म का ही स्वरूप हैं, और अखण्ड को खंडित दृष्टि से देखना ही पाखण्ड होता है। कैकेयी सब कुछ हो सकती हैं किंतु पाखण्डी नहीं।
हमारी देह में दिखने वाला और ना दिखने वाला प्रत्येक अंग महत्वपूर्ण होता है, सभी का अपना विशेष महत्व होता है, यदि हमारी देह के सभी अंग एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा करते हुए मात्र स्वयं के महत्व को स्थापित करने में लग जाएँ तो यह प्रलय के जैसा होगा, जो मात्र हमारे ही नहीं सम्पूर्ण सृष्टि के विनाश का कारण होगा।
मंथरा, महाराज दशरथ सत्य ही यथा नाम तथा गुण हैं। वैसे देखा जाए तो इस धरती पर जन्म लेने वाला प्रत्येक मनुष्य दशरथ ही होता है। हमारा देह रूपी रथ, पाँच तत्व और पाँच इंद्रियों के योग से बना दशरथ ही तो है, किंतु इसके बाद भी प्रत्येक मनुष्य के जीवन में राम रूपी ज्ञान, लक्ष्मण रूपी वैराग्य, भरत रूपी भक्ति, और शत्रुघन रूपी साहस का अभाव रहता है, क्योंकि हम परमात्मा प्रदत्त इस शरीर रूपी दशरथ को भुला देते हैं, और अपनी इंद्रियों को नियंत्रित करने के स्थान पर हम अपनी इंद्रियों से नियंत्रित होने लगते हैं।
महाराज दशरथ की हम तीन रानियाँ हैं, जिनमें कौशल्या अपने प्रत्येक कार्य को कुशलता से सम्पन्न करना चाहती हैं, उनके जीवन में कौशल का, युक्ति का विशेष महत्व है इसलिए वे सबसे अधिक कुशल हैं।
मैं कर्म की शक्ति में विश्वास रखती हूँ इसलिए सबसे अधिक कर्मठ हूँ और सुमित्रा भक्ति को महत्व देती है इसलिए वो सबके प्रति मित्रता के भाव से भरी रहती हैं वे सबसे अधिक सहृदय है।
जैसे महाराज दशरथ ने हम तीनों के साथ सुंदर संतुलन बनाकर रखा है यदि वैसा ही संतुलन प्रत्येक मनुष्य अपने अंदर अवस्थित कुशलता अर्थात युक्ति, कर्मठता अर्थात शक्ति, और मित्रता अर्थात भक्ति रूपी भावों से बनाकर रखे तो इस संसार की प्रत्येक देह में राम का अवतरण हो जाएगा, तब इस संसार की प्रत्येक देह ही अयोध्या हो जाएगी। अयोध्या का अर्थ ही होता है जहाँ युद्ध नहीं होता, या जिसे युद्ध में जीता ना जा सके। हमारा जीवन भावों का समर नहीं भावों का सागर है, इसलिए इसे भवसागर कहा जाता है।
ये किसी स्त्री का सबसे बड़ा सुख होता है की उसका पति, उसके पुत्र उसके अनुकूल हो। किसी माता का आनंद स्वयं को शक्तिसंपन्न करने में नहीं होता, अपितु उसकी संतानों को शक्तिशाली बनाने में होता है।
भरत भावुक है और राम संवेदनशील। राज्य की कुशलता के लिए राजा को भावुक नहीं संवेदनशील होना चाहिए। भावुक व्यक्ति स्वानुभूति को परानुभूति बनाने में विश्वास करता है और वहीं संवेदनशील व्यक्ति परानुभूति को भी स्वानुभूति बना लेता है।
कैकेयी ने हँसते हुए कहा- तू सत्य ही अपने नाम को चरितार्थ कर रही है। अपने नाम मंथरा का अर्थ जानती है ?
जी महारानी, जो मंथर गति से चले वो मंथरा।
मंथर गति से कौन चलता है ? कैकेयी के इस प्रश्न पर मंथरा चुपचाप उसे देखती रही, उसने कोई उत्तर नहीं दिया।
कैकेयी ने मुस्कुराते हुए कहा- हमारी बुद्धी जब चिंता से युक्त होती है तब वह अति मंथर गति से चलती है, हमारी चिंता युक्त बुद्धि को ही मंथरा कहा जाता है।
लेकिन जब वही बुद्धी चिंतन से युक्त होती है तब त्वरा कहलाती है।
किंतु ये सब तुझे समझ नहीं आएगा, क्योंकि ना तो तूने विवाह किया और नाही किसी संतान को जन्म दिया।
कैकेयी के वचनों से मंथरा व्यथित होते हुए बोली- महारानी मैंने तुम्हारे जीवन के लिए अपने सम्पूर्ण जीवन की आहुती दे दी, क्या इसलिए कि तुम इस प्रकार के वचनों से मेरे हृदय को विदीर्ण कर दो ? 

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रामराज्य
5.0
प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता आशुतोष राना की यह पुस्तक मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के जीवन-दर्शन पर आधारित है। उन्होंने अपनी विशिष्ट लेखन शैली में उन प्रसंगों की व्याख्या की है जो आमजन के मस्तिष्क में उमड़ते-घुमड़ते रहे हैं। पुस्तक इतनी रोचक है कि एक बार पढ़ना प्रारंभ कर देने के बाद बीच में रुकना लगभग असंभव है।

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