रिश्तें अपना मूल्य खो रहे अपनों में वो प्यार नहीं है जो दादा के दादा ने देखा अब बैसा संसार नहीं
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मेरी प्रकाशित गज़लें और रचनाएँ : मेरी ग़ज़ल जय विजय ,बर्ष -२ , अंक ९ ,जून २०१६ में