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साँपों की पहचान एवं सर्पदंश की चिकित्सा

5 जुलाई 2016

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प्रस्तावना : सरकारी आंकड़ों के अनुसार हमारे देश में सर्प दंश से प्रति वर्ष लगभग 50 हजार लोगों की मृत्यु होती है | गैर सरकारी आंकड़ों के अनुसार यह संख्या एक लाख से भी अधिक है | जबकि हमारे देश की अपेक्षा आस्ट्रेलिया में विषधर साँपों की संख्या कई गुना अधिक है, फिर भी वहां सर्पदंश से मृत्यु दर 5 वर्ष में मात्र 2-3 लोग ही है |

 

यह अंतर क्यों ?

      इस अंतर का मुख्य कारण है कि हमारे देश में सर्प दंश के बाद लोग सीधे अस्पताल न जाकर झाड़-फूंक करने वाले लोग,फ़कीर,मजार,बाबा आदि की शरण में जाते हैं | ग्रामीण अंचलों में सही चिकित्सा व्यवस्था का अभाव भी इन कारणों में से एक है |     

      सबसे दुखद एवं कटु सत्य पहलू यह भी है कि चिकित्सा पाठ्यक्रम(MBBS) में सर्प दंश की चिकित्सा सम्बंधित विषय की पूर्ण रूप से अवहेलना | ग्रामीण समस्याओं की अवहेलना भी इसका एक मुख्य कारण हो सकता है | इन सबसे परे कलकत्ता के एक प्रबुद्ध चिकित्सक डॉ दयाल बन्धु  मजुमदार द्वारा "स्नेक बाइट इंटरेस्ट ग्रुप" नामक एक व्हाट्स एप्प ग्रुप की शुरुआत की गई है जिसमें भारत के 6 राज्यों के चिकित्सा विशेषज्ञ अपने मूल्यवान विचारों एवं सर्पदंश चिकित्सा के विवरण को साझा कर लोगों का ज्ञान वर्धन एवं जागरूक कर रहे हैं | सर्पदंश की चिकित्सा के संबंध  में राष्ट्रीय स्तर पर अधिनियम बनने की शुरुआत हो चुकी है | हर्ष का विषय यह भी है कि पश्चिम बंगाल के कक्षा 8 के पाठ्यक्रम में भी इस विषय को समाहित किया गया है | थोड़ी सी और जागरूकता यदि बढ़ जाए तो सर्पदंश से होने वाले मृत्यु दर को आसानी से कम किया जा सकता है |

 आईये इस सम्बन्ध में कुछ अन्य बातें साझा करते हैं :-

खतरनाक सांपों की प्रजातियां कौन-कौन सी हैं ? इस मृत्यु कारक काल को पहचान लें | पश्चिम बंगाल के विषधर साँपों में विशेषरूप से चार प्रजातियों के विषधर सांप हैं, भारत के अन्य राज्यों में Saw Scaled Viper{हिंदी नाम-अफाई(उत्तर प्रदेश के देहाती अंचलों में इसे घोड़-करैत के नाम से जाना जाता है) मराठी में-फुरस, बंगला नाम- फुरसा बोड़ा  सांप} पाया जाता है | इसका विष Russel Viper(चन्द्रबोड़ा/कौड़िया) जैसा ही घातक होता है   पर पश्चिम बंगाल में इस प्रजाति का सांप नहीं पाया जाता | इसके अलावा अन्य राज्यों में भी भिन्न प्रजातियों के विषधर सांप हो सकते हैं | मुख्य रूप से विषधर साँपों को दो श्रेणियों में विभाजित किया गया है | वो सांप जिनके काटने से तंत्रिका तंत्र प्रभावित होता है(Neurotaxic) और दूसरे जिनके काटने से रक्त संचार तंत्र(Circulatory system) प्रभावित होता है | इन दोनों वर्ग के सांपों के काटने से मृत्यु हो सकती है | पश्चिम बंगाल में पाये जाने वाले कुछ विषधर सांपों की चर्चा निम्नलिखित अनुच्छेदों में की जा रही है(चूँकि डॉ दयाल बंधु मजूमदार द्वारा पश्चिम बंगाल के विषधर सांपों पर अधिक अध्ययन किया गया है,अतः यहाँ पश्चिम बंगाल के सांपों की चर्चा की गए है | भारत के अन्य राज्यों में कमोबेश इन प्रजातियों से मिलते जुलते या अन्य प्रजातियों के सांप मिलते हैं पर उनके विष की चिकित्सा प्रक्रिया हर जगह एक ही होनी  चाहिए)  :-

फणधर सर्प

1.   गोखरू(बंगला नाम), हिंदी नाम–गेहुंवन (फणधारी एवं तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करने वाला विषधर)

2.  केउटे(बंगला नाम),हिंदी नाम–नाग (फणधारी एवं तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करने वाला विषधर)

3.  चन्द्रबोड़ा(बंगला नाम), हिंदी नाम–कौड़िया(इसका विष रक्त संचालन को ख़त्म कर देता है )

 

फणहीन सर्प

4.  कालाच(बंगला नाम), हिंदी नाम–करैत (फणहीन एवं तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करने वाला विषधर)
इनके अलावा शांखामुटी नाम एक और विषधर सांप है पर उसके बारे में विशेष चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है | यह सांप प्रकृति से ही शांत स्वभाव का है तथा अबतक इसके काटने से मृत्यु का कोई इतिहास नहीं मिला है |

सर्पदंश की रोकथाम के लिए :-

    ** घर के आसपास साफ़-सफाई रखें |

    ** रात को सोने से पहले बिस्तर को झाड़कर, मच्छरदानी लगाकर अवश्य सोएं (यदि जमीन   पर    सोते हों तो मच्छरदानी का अवश्य ही प्रयोग करें)|

    ** रात के अँधेरे में यदि चलना हो तो लाठी लेकर चलें एवं उसे जमीन पर ठोंकते हुए चलें,   ताली बजाकर चलने का कोई लाभ नहीं होता क्योंकि सांपों के कान नहीं होते हैं |

    ** जूता पहनने के पहले उसे झाड़ लें |

    ** घर के आसपास यदि चूहे के रहने का कोई छेद दिखे तो उसे तुरंत बंद करें |

याद रखें ताबीज,यंत्र,अंगूठी कुछ भी सर्पदंश से नहीं बचा सकता है | एक मात्र सावधानी ही सर्प दंश से रक्षा कर सकता है |

 

  सर्पदंश की प्राथमिक चिकित्सा :सर्पदंश की प्राथमिक चिकित्सा के लिए एक सूत्र है-.Do.R_I_G_H_T

R- Reassurance- मरीज को आश्वासन दें | चूँकि सांप के काटने से मरीज घबरा जाता है, इस घबड़ाहट में सदमे के कारण नाहक ही मौत हो सकती है | अतः मरीज को समझाना है कि सर्पदंश के अधिकांश मरीज ठीक हो जाते हैं, आप निश्चित रहे |

 

I – Immobilization- जहां तक हो सके मरीज को कम से कम हिलाया जाए | जितनी हलचल होगी विष को पूरे शरीर में फैलने की संभावना उतनी ही अधिक होगी | सर्पदंश के स्थान पर स्केल या बांस के के टुकड़े का प्रयोग करते हुए किसी कपडे से हल्का कर बाँध दें | हाथ या पैर (सर्पदंश के समीप) मोड़ा न जा सके उसके लिए यह उपाय किया जाता है |

 

GH – Go To हॉस्पिटल – जैसे भी हो, मरीज को नजदीकी अस्पताल ले जाएं | ऐसे अस्पताल में जाएं जहां :-

      () .वी.एस(A.V.S)(इसे आम भाषा में A.S.V. भी कहा जाता है)

      () नियोस्टिग्मीन (Neostigmine)

      () एट्रोपिन(Atropin) एवं

      () एड्रीनलिन(Adrinaline) उपलब्ध हो ऐसे अस्पताल में ले जाएँ | याद रखें कि हर ब्लॉक के  प्राथमिक       चिकित्सा केंद्र(Primary Health Centre) पर सर्पदंश की चिकित्सा की सुविधा उपलब्ध है | मरीज को मोटरसाइकिल पर दो लोगों के बीच बिठाकर बातें करते हुए ले जाएं | यहां समय पर पहुँचना अत्यन्त आवश्यक है | अस्पताल पहुँचने के बाद मरीज के शरीर में लगा कोई भी आवरण(Ligature), अंगूठी या ऐसा कुछ भी हो उसे निकाल दिया जाना चाहिए |

 

T- Tell Doctor for Treatment : अस्पताल पहुंचकर चिकित्सक से सर्पदंश की चिकित्सा प्रारम्भ करने के लिए कहिये | मरीज की स्थिति का वर्णन करते समय उसके बोलचाल में किसी प्रकार की कमी या परिवर्तन आना तथा अन्य किसी प्रकार के परिवर्तन के बारे में चिकित्सक को अवश्य बताएं |

 

Rule OF 100 : अस्पताल ले जाने से  सर्पदंश के 100 मिनट के अंदर AVS(ASV) का 100 मिलीलीटर यदि शरीर में प्रवेश करा दिया जाए तो मरीज के बचने की संभावना 100% हो     जाती है |

 

 सर्पदंश की चिकित्सा किस प्रकार हो ?चिकित्सक को कैसे पता चले कि सर्पदंश का मामला है ?
20 WBCT(20 Minute Whole Blood Clotting Test) :
इस प्रक्रिया द्वारा मरीज के रक्त में किसी प्रकार का परिवर्तन हो रहा है या नहीं इस  बात की जांच की जाती है | इसके लिए एक सिरिंज, साफ़ और सुखाया हुआ शीशे का टेस्ट ट्यूब(प्लास्टिक के टेस्ट ट्यूब से काम नहीं चलेगा | जांच ठीक से हो इसके लिए आवश्यक है कि टेस्टट्यूब साफ़ सुथरी एवं नई हो) |


विधि : मरीज के शरीर से 2 मिलीलीटर रक्त लेकर नए शीशे के टेस्ट ट्यूब में सीधा रखकर ठीक 20 मिनट के लिए छोड़ दिया जाता है | यदि स्टॉपवॉच हो तो काफी सुविधाजनक होगा | टेस्ट ट्यूब को टेढ़ा कर देखा जाएगा कि रक्त जमना(Clotting) प्रारम्भ हुआ है या नहीं | यदि रक्त जमना प्रारम्भ नहीं होता है तो यह अवश्य ही चन्द्रबोडा का दंश है | याद रखें इस जांच के लिए किसी प्रयोगशाला की आवश्यकता नहीं है | चन्द्रबोडा(हेमाटोटॉक्सिक) को छोड़कर अन्य सांपों के काटने से रोगी में उत्पन्न निम्नलिखित लक्षणों को देख कर सर्पदंश को सुनिश्चित किया जा सकता है :-

    1. दोनों आंखों की पलकें झुकने लगती हैं (Bilateral Ptosis) – हर सांप के काटने पर यह           मूल लक्षण प्रकट होता है |

   2. सर्पदंश के स्थान पर असहनीय जलन(फणधर सांप के काटने पर)

   3. सूजन

   4.  शरीर के विभिन्न स्थानों से रक्त बहने लगता है | (चन्द्रबोडा या कौड़िया के काटने पर)      

   5. थूक निगलने में असुविधा होना |

   6.  धुंधला दिखाई देना |

   7.  जीभ उलट जाना |

   8.  शरीर में आलस सा आना |

   यदि समय पर चिकित्सा न हो सकी तो सांस की तकलीफ और अंत में सांस बंद हो जाने से     मृत्यु |

*** एशिया का सबसे विषधर सांप करैत(कलाच) है जिसके काटने से ना ही तो दंश के स्थान पर किसी प्रकार का दंश चिन्ह होता है न ही तो किसी प्रकार का जलन होता है | पेट में दर्द से शुरुवात, ऐंठन होना, कमजोरी महसूस होना तथा दोनों आँखों की पलकें बुझने (Ptosis) लगना करैत के काटे का लक्षण है |

 

चिकित्सा :

           विष का प्रभाव सुनिश्चित हो जाने पर चिकित्सक :-

    ** बिना किसी त्वचा जांच( स्किन टेस्ट) के (इस जांच प्रक्रिया को WHO ने सन 2010 में बंद कर दिया है) बच्चा हो या प्रौढ़ सबके लिए चार हिस्से में से एक हिस्सा एड्रनलिन इंजेक्शन त्वचा के अंदर दिया जाता है |(बचा हुआ किसी अन्य प्रतिकूल प्रतिक्रया होने पर प्रयोग किया जा सकता है, इसके लिए इसे सिरिंज में ही छोड़ दिया जाता है)| सैलाइन के साथ AVS(ASV) के दस शीशी(Vial) एक घंटे से भी काम समय में शरीर में प्रवेश करवाना आवश्यक होगा | इसके साथ ही नियोस्टिगमीन और एट्रोपिन (फणधर सर्प जैसे गेहुंवन और नाग के काटने पर यदि इन दोनों का प्रयोग नहीं किया गया तो मृत्यु होने की शतप्रतिशत आशंका रहती है | मात्र कौड़िया के दंश में इनकी उपयोगिता नहीं  होती है |

* * यदि किसी कारण मरीज को किसी अन्य अस्पताल रेफर करना पड़े तो बिना 10 शीशी(Vial) AVS, न्यूस्टिगमीन एवं एट्रोपिन लगाए आगे भेजना अनुचित होगा |(याद रखें दिनांक 02 अगस्त 2014 को विष्णुपुर की मालती लोहार को  नाग ने काटा था पर उसे मात्र 05शीशी(Vial) AVS(ASV), दिया गया और बिना नियोस्टिग्मीन एवं एट्रोपिन लगाए आगे भेज दिया गया | बांकुड़ा अस्पताल जाते समय रास्ते में उसकी मौत हो गई)|

** AVS(ASV) लगने पर 20% मामलों में प्रतिकूल प्रतिक्रया (जैसे श्वांस की तकलीफ, शरीर के जोड़ों में असहनीय दर्द आदि) की स्थिति में  सिरिंज में रखी एड्रनलिन का 0.5 ml. लगाकर उपचार किया जा सकता है |

**  विष के लक्षण के आधार पर AVS(ASV) की दूसरी या तीसरी खुराक दी जा सकती है | पर जिस अस्पताल में किडनी की जांच की सुविधा हो वहीं यह खुराक देना उचित है |

** चन्द्रबोडा(कौड़िया) के काटने पर यदि चिकित्सा में विलंब हो तो डायलेसिस की आवश्यकता पड़ सकती है | (चन्द्रबोडा(कौड़िया) के काटने पर हर मिनट की देरी से किडनी की 10% क्षति, दंश वाले स्थान पर सड़न(Necrosis) हो सकता है जिसके कारण उस अंग  को काटना पड़ सकता है |

  पश्चिम बंगाल सरकार ने दिनांक 19.08.2008 के एक सरकारी आदेश संख्या 1561(19)F.R./4P-3/04 के माध्यम से यह आदेश जारी किया है कि सर्पदंश से यदि किसी मरीज की मृत्यु हो जाती है और सरकारी अस्पताल के चिकित्सक यह प्रमाण पत्र जारी करते हैं कि मरीज की मृत्यु सर्पदंश से हुई है तो उसके घरवालों को एक मुश्त एक लाख रुपया क्षतिपूर्ति के रूप में दिया जाएगा |

      अतः आइये सब मिलकर सर्पदंश से होने वाले मृत्यु की रोकथाम के लिए प्रयास करें | मरीज को अन्धविश्वास की बेड़ियों से छुड़ाकर अस्पताल भिजवाएं एवं निःशुल्क चिकित्सा की व्यवस्था करवाई जाए |

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