मन बड़ा बलवान् शत्रु है। इससे युद्ध करना भी अत्यंत दुष्कर कृत्य है। इससे युद्ध में एक विचित्रता है। यदि युद्ध करने वाला दृढ़ता से युद्ध में संलग्न रहे, निज इच्छाशक्ति को मन के व्यापारों पर लगाए रहे, तो युद्ध में संलग्न सैनिक की शक्ति अधिकाधिक बढ़ती है और एक दिन वह इस पर पूर्ण विजय प्राप्त कर लेता है