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सम्बन्ध

9 नवम्बर 2015

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featured image टूटकर बिखर जाने वाले अपने प्रियजनों से जो सम्बन्ध........... क्या उन्हें सम्बन्ध कह सकते हैं ? नहीं । वे तो महज़ सम्बन्ध हैं स्वार्थ के स्वार्थ पूरा हो जाये तो सम्बन्ध नहीं तो कुछ नहीं केवल घृणा । एक ऐसी घृणा जो गले में अटका हुआ एक काँटा है न निगलते बनता है न निकाले बनता है यह- संसार है । निरर्थक भावनाओं पर टिका है । काश.. मानव इन भावनाओं से उबार पाता इस घृणा के भाव से ऊपर उठ मानव बन जाता एक दूसरे को गले लगा संबंधों में प्यार बरसाता स्वार्थ छोड़ , केवल परहित में लग जाता काश.. मानव मानव बन पता , मानव बन पाता

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ओम प्रकाश शर्मा

ओम प्रकाश शर्मा

उत्कृष्ट भावाभिव्यक्ति !

15 दिसम्बर 2015

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srijan
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