संपत्ति की लालसा
दो दोस्त पैसा कमाने के लिए घर से निकले, रास्ते में एक जंगल से गुजर रहे थे की उन्हें पेड़ के नीचे बैठा एक बूढा सन्यासी मिला।
वहीँ बेठ कर थोड़ी देर विश्राम करने लगे।तभी वहां से सन्यासी उठ कर चल पड़ा। एक मित्र ने कहा,'महाराज आप अपनी यह पोटली यहाँ छोड़ कर जा रहे हैं।
सन्यासी ने पोटली की ओर इशारा करते हुए कहा,"इस पोटली को मत छूना यह व्यवहार और विचार बदल देती है"।
दोनों परम मित्रों ने डरते- डरते सन्यासी के जाते ही पोटली को खोल कर देखा, पोटली सोने के सिक्कों से भरी पड़ी थी, दोनों बहुत खुश हुए, सोचा इतने में तो दोनों की ज़िंदगी आराम से कट जाएगी, पोटली मिलने के बाद खुशी-खुशी एक ने खाने की व्यवस्था करी, तो दूसरे ने पानी पीने की व्यवस्था करने निकल पड़ा। पहला खाना बनाने लगा तो दूसरा दूर जाकर पानी लेकर आया।
जैसे ही पानी लाने वाले मित्र ने खाना खाया जहर के कारण वह मर गया, दूसरे मित्र ने सोचा, खाने में तो मैंने जहर मिलाया है क्यों ना, मैं पानी पीकर ही आगे चलूं
जैसे ही उसने पानी पिया वह भी मर गया क्योंकि पहला दोस्त पानी में जहर मिलाकर लाया था।
सिक्कों से भरी पोटली मिलते ही पहले दोस्त ने सोचा कि वह पूरा इसे हड़प ले, दूसरे दोस्त ने भी मन ही मन विचार किया और सोचा कि क्यों ना वह पूरी पोटली हड़प ले।
लोभ के भीतर प्रवेश होते ही सब कुछ बदल गया।
सार ;-
एक कहावत है चाहे सारी दुनिया का धन भी इंसान को मिल जाये परंतु उसकी धन को पाने की भूख शांत नहीं हो सकती। कर्म और पुरुषार्थ नहीं छोड़ो परंतु जो है जितना है उसमें संतुष्ट रहना सीखें।*