सन्धि शब्दस्य उत्पत्ति
सम् (उपसर्ग) + डुधाञ् धा (धातु )+ कि (प्रत्यय)
परिभाषा - वर्ण संधानम संधि
शिव + आलय:
शिव् अ + आ लय:
आ
शिवालय:
पाणिनि परिभाषा - पर : सन्निकर्ष: संहिता
सुध्युपास्य:
सुधी + उपास्य:
सुध् ई + उपास्य:
य्
सुध्युपास्य:
सन्धि भेदा - त्रय
(१)स्वर: (अच्) सन्धि
(२) व्यञ्जन (हल्) संधि
(३) विसर्ग: सन्धि
(१) स्वर : (अच्) सन्धि = यदा द्वयो स्वरयो: संधानं वा जायते तत् सन्धानं स्वर: सन्धि कथ्यते | ( दो स्वरो के मेल से जो परिवर्तन होता है उसे स्वर संधि कहते हैं)
देव + इन्द्र :
देव् अ + इ न्द्र :
ए
देवेन्द्र :
अच् (स्वर ) सन्धि भेदा : -
(१) दीर्घ सन्धि
(२) यण् सन्धि
(३) गुण सन्धि
(४)वृध्दि सन्धि
(५) अयादि सन्धि
(६) पूर्वरूप सन्धि
(७) पररूप सन्धि
(१) दीर्घ सन्धि :=
सूत्र - अक् : सवर्णे दीर्घ :
अक् ( अ ,इ, उ, ऋ ,लृ )
अ + अ = आ
अ + आ = आ
आ + अ = आ
आ + आ = आ
मुरारि : मुर + अरि :
मुर् अ + अ रि :
आ
मुरारि :
नास्ति
न + अस्ति
न् अ + अ स्ति
आ
नास्ति
उ + उ = ऊ
उ + ऊ = ऊ
ऊ + उ = ऊ
ऊ + ऊ = ऊ
लघु + उपदेश :
लघ् उ + उ पदेश :
ऊ
लघूपदेश :
भानूदय:
भानु + उदय :
भान् उ + उ दय:
ऊ
भानूदय :
इ + इ = ई
ई + ई = ई
मुनि + इन्द्र :
मुन् इ + इ न्द्र :
ई
मुनीन्द्र :
नदीश :
नद् ई + ई श:
ई
नदीश:
ऋ + ऋ = ृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृृऋृृृ
पितृ + ऋणम्
पित् ऋ + ऋ णम्
ऋृ
पितृणम्
होतृकार:
होतृ + ऋकार :
होत् ऋ + ऋ कार :
ऋृ
होतृकार :
(१) यण् सन्धि = सूत्र - इकोयणचि
इक् + यण् + अच्
इक् - इ उ ऋ लृ
| | | | [ असमान स्वर बाद में आते तो
य् व् र् ल्
इ/ई + असमान स्वर = य्
इति + अत्र
इत् इ + अत्र
|
य्
इत्यत्र
न्यून
न् इ + ऊन
य्
न्यून
ऊ/ ऊ + असमान स्वर: = व्
मधु + अरि:
मध् उ + अरि:
व्
मध्वरि:
स्वागतम् :
सु + आगतम्:
स् उ + आगतम्
व्
स्वागतम्:
वधू + इति:
वध् उ + इति :
व्
वध्विति:
ऋ/ऋ + असमान स्वर: = र्
मातृ + आदेश:
मात् ऋ + आदेश:
र्
मात्रादेश:
लृ + असमान स्वर: = ल्
लृ + आगतम्:
ल्
लागतम् :
लृ + आ
ल् + आ
ला