एक बार रविदास ज्ञानी,
कहन लगे सुनो अटल कहानी।
कलयुग बात साँच अस होई,
बीते सहस्र पाँच दस होई।
भरमावे सब स्वार्थ के काजा,
बेटी बेंच तजे कुल लाजा।
नशा दिखावे घर में पूरा,
माता-बहन का पकड़ें जूड़ा।
अण्डा मांस मछलियाँ खावें,
भिक्षा कर अति पाप कमावें।
जबरी करिहैं भोग बिलासा,
सज्जन मन अति होय निराशा।
पर नारी को गले लगइहैं,
नारी भी अति आतंक मचहइहैं।
अपने पति को मार भगइहैं,
पर प्यारे को गले लगइहैं।
कर्म देख पृथ्वी फट जहइहैं,
अम्बर भी दरारें खइहैं।
अति भीषण क्रांति की ज्वाला,
तामें कूद पड़े मत्तवाला।
जब देश आजाद होइ जइहैं,
वो शक्ति जाकर छुप जइहैं।
धरे वेश साधु का न्यारा,
गुरु नाम का करै प्रचारा।
बल्कल का वस्त्र पहिनइहैं,
साधन भजन सबसे करवइहैं।
ऐसा मन्दिर एक बनवइहैं,
जो भूमण्डल पर कहीं न दिखइहैं।
पंचम कलश अनोखी मूरत,
झण्डा श्वेत सुरीली सूरत।
गुरु नाम से सब जग जाने,
उनको परम पूज्य अति मानै।
सत्य पंथ का करि प्रचारा,
देश धर्म का करि विस्तारा।
करैं संगठन बनि ब्रह्मचारी,
उन समान कोई न उपकारी।
अस कहि मौन भए रविदासा,
विनयपूर्ण मुनि प्रेम प्रकाशा।
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भारत में अवतारी होगा
जो अति विस्मयकारी होगा
ज्ञानी और विज्ञानी होगा
वो अदभुत सेनानी होगा
जीते जी कई बार मरेगा
छदम वेश में जो विचरेगा
देश बचाने के लिए होगा आह्वान
युग परिवर्तन के लिए चले प्रबल तूफ़ान
तीनों ओर से होगा हमला
देश के अंदर द्रोही घपला
सभी तरफ़ कोहराम मचेगा
कैसे हिंदुस्तान बचेगा
नेता मंत्री और अधिकारी
जान बचाना होगा भारी
छोड़ मैदान सब भागेंगे
सब अपने अपने घर दुबकेंगे
जिन जिन भारत मात सताई
जिसने उसकी करी लुटाई
ढूंढ-ढूंढ कर बदला लेगा
सब हिसाब चुकता कर देगा
चीन अरब की धुरी बनेगी
विध्वंसक ताकत उभरेगी
घाटे में होंगे ईसाई
इटली में कोहराम मचेगा
लंदन सागर में डूबेगा
युद्ध तीसरा प्रलयंकारी
जो होगा भारी संहारी
भारत होगा विश्व का नेता
दुनिया का कार्यालय होगा
भारत में न्यायालय होगा
तब सतयुग दर्शन आएगा
संत राज सुख बरसाएगा
सहस्र वर्ष तक सतयुग लागे
विश्व गुरु भारत बन जागे।'
संत रविदास की अन्य किताबें
संत शिरोमणि कवि रविदास का जन्म माघ पूर्णिमा को 1376 ईस्वी को उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर के गोबर्धनपुर गांव में हुआ था। उनकी माता का नाम कर्मा देवी (कलसा) तथा पिता का नाम संतोख दास (रग्घु) था। उनके दादा का नाम श्री कालूराम जी, दादी का नाम श्रीमती लखपती जी, पत्नी का नाम श्रीमती लोनाजी और पुत्र का नाम श्रीविजय दास जी है। गुरु संत रविदास 15 वीं शताब्दी के एक महान संत, दार्शनिक, कवि और समाज सुधारक थे. वह निर्गुण भक्ति धारा के सबसे प्रसिद्ध और प्रमुख संत में से एक थे और उत्तर भारतीय भक्ति आंदोलन का नेतृत्व करते थे. उन्होंने अपने प्रेमियों, अनुयायियों, समुदाय के लोगों, समाज के लोगों को कविता लेखन के माध्यम से आध्यात्मिक और सामाजिक संदेश दिए हैं. लोगों की दृष्टि में वह सामाजिक और आध्यात्मिक ज़रूरतों को पूरा कराने वाले एक मसीहा के रूप थे. वह आध्यात्मिक रूप से समृद्ध व्यक्ति थे. उन्हें दुनियाभर में प्यार और सम्मान दिया जाता है लेकिन इनकी सबसे ज्यादा प्रसिद्धि उत्तरप्रदेश, पंजाब और महाराष्ट्र राज्यों में हैं. इन राज्यों में उनके भक्ति आंदोलन और भक्ति गीत प्रचलित हैं. विदास बचपन से ही बुद्धिमान, बहादुर, होनहार और भगवान के प्रति चाह रखने वाले थे। रविदास जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने गुरू पंडित शारदा नन्द की पाठशाला से शुरू की थी। लेकिन कुछ समय पश्चात उच्च कुल के छात्रों ने रविदास जी को पाठशाला में आने का विरोध किया। हालाँकि उनके गुरू को पहले से ही आभास हो गया था कि रविदास को भगवान ने भेजा है। रविदास जी के गुरू इन उंच-नीच में विश्वास नहीं रखते थे। इसलिए उन्होंने रविदास को अपनी एक अलग पाठशाला में शिक्षा के लिए बुलाना शुरू कर दिया और वहीं पर ही शिक्षा देने लगे। गुरू रविदास जी पढ़ने में और समझने में बहुत ही तेज थे, उन्हें उनके गुरू जो भी पढ़ाते थे वो उन्हें एक बार में ही याद हो जाता था। इससे रविदास के गुरू बहुत प्रभावित थे। रविदास जी के व्यवहार, आचरण और प्रतिभा को देखते हुए गुरूजी को बहुत पहले ही यह पता चल गया था कि यह लड़का एक महान समाज सुधारक और आध्यात्मिक गुरू बनेगा। रविदास जी ने धर्म के नाम पर जाति, छुआछूत, रंगभेद जैसे सामाजिक दूषणों को नाबूद करने की कोशिश की। उन्होंने लोगों को ईश्वर के प्रति प्रेम की सच्ची परिभाषा समझाई। लोगों को अपने कर्मों का महत्व समझाया। रविदास जी ने मूर्ति पूजा से ज्यादा अपने कर्मों में विश्वास रखना चाहिए यह बात लोगों को बताई। रैदास कबीर के समकालीन थे। रामानंद गुरु के बारह शिष्यों में से रैदास और कबीर प्रमुख शिष्य थे। संत कबीर जी और गुरु रविदास जी में गहन मित्रता थी। उन दोनों महापुरुषों ने हिंदू और मुसलमानों को एक साथ लाने की कोशिश की। कबीर की तरह रैदास भी कवियों में विशिष्ट स्थान रखते हैं। कबीर ने रैदास को ‘संतन में रविदास’ कहकर मान दिया था।
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