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ससुर जी उवाच (हास्य कविता)- अशोक चक्रधर!

25 सितम्बर 2015

2349 बार देखा गया 2349
featured imageडरते झिझकते, सहमते सकुचाते, हम अपने होने वाले, ससुर जी के पास आए, बहुत कुछ कहना चाहते थे , पर कुछ, बोल ही नहीं पाए। वे धीरज बँधाते हुए बोले- बोलो! अरे, मुँह तो खोलो। हमने कहा- जी. . . जी जी ऐसा है वे बोले- कैसा है? हमने कहा- जी. . .जी ह़म हम आपकी लड़की का हाथ माँगने आए हैं। वे बोले अच्छा! हाथ माँगने आए हैं! मुझे उम्मीद नहीं थी कि तू ऐसा कहेगा, अरे मूरख! माँगना ही था तो पूरी लड़की माँगता सिर्फ़ हाथ का क्या करेगा? - अशोक चक्रधर
वर्तिका

वर्तिका

धन्यवाद गुरमुख सिंह जी!

26 सितम्बर 2015

वर्तिका

वर्तिका

धन्यवाद ओम प्रकाश जी!

26 सितम्बर 2015

ओम प्रकाश शर्मा

ओम प्रकाश शर्मा

अशोक चक्रधर जी की यह सुन्दर हास्य रचना साझा करने हेतु बहुत-बहुत धन्यवाद !

26 सितम्बर 2015

गुरमुख सिंह

गुरमुख सिंह

अति सुंदर रचना ।

25 सितम्बर 2015

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रचनाएँ
manranjan
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इस आयाम के अंतर्गत आप मनोरंजन जगत से सम्बंधित खबरें पढ़ सकते हैं.
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हँसी की फुहार!

3 सितम्बर 2015
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चूहों का गैंग तलवार लेकर भाग रहा था... शेर ने पूछा - क्या हुआ, तुम लोग इतने गुस्से से कैसे भाग रहे हो..? चूहा- हाथी की बेटी को किसी ने प्रपोज किया है, नाम हमारा आ रहा है। लाशें बिछा देंगे.. लाशें!! लड़का अपनी क्लास की लड़की से मिलने गया,जैसे ही दरवाजा खुला लड़की का बाप आया,लड़का – अंकल मैं आपकी बेटी से.

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काका हाथरसी के हास्य दोहे!

21 सितम्बर 2015
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हिंदी के प्रसिद्ध व्यंगकार एवं हास्य कवि, "काका हाथरसी" के दोहे:अक्लमंद से कह रहे, मिस्टर मूर्खानंद,देश-धर्म में क्या धरा, पैसे में आनंदअँग्रेजी से प्यार है, हिंदी से परहेज,ऊपर से हैं इंडियन, भीतर से अँगरेज#अंतरपट में खोजिए, छिपा हुआ है खोट,मिल जाएगी आपको, बिल्कुल सत्य रिपोट#अंदर काला हृदय है, ऊपर ग

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नेता जी की शिकायत (हास्य कविता)- प्रवीण शुक्ला

22 सितम्बर 2015
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एक कवि-सम्मेलन में'नेता जी' मुख्य अतिथि के रूप में आये हुए थे,परन्तु गुस्से के कारणअपना मुँह फुलाये हुए थे ।उपस्थित अधिकांश कविनेताओं के विरोध में कविता सुना रहे थे,इसलिए, नेता जी कोबिल्कुल भी नहीं भा रहे थे ।जब उनके भाषण का नम्बर आयातो उन्होंने यूँ फ़रमाया-इस देश मेंबिहारी और भूषण की परम्परा का कविन

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मॉडर्न रसिया (हास्य कविता)-अल्हड़ बीकानेरी

23 सितम्बर 2015
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असली माखन कहाँ आजकल ‘शार्टेज’ है भारी,चरबी वारौ ‘बटर’ मिलैगो फ्रिज में, हे बनवारी,आधी टिकिया मुख लिपटाय जइयो,बुलाय गई राधा प्यारी,कान्हा, बरसाने में आय जइयो,बुलाय गई राधा प्यारी।मटकी रीती पड़ी दही की, बड़ी अजब लाचारी,सपरेटा कौ दही मिलैगो कप में, हे बनवारी,छोटी चम्मच भर कै खाय जइयो,बुलाय गई राधा प्या

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चुल्लूभर पानी(हास्य-व्यंग) -काका हाथरसी

25 सितम्बर 2015
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बटुकदत्त से कह रहे, लटुकदत्त आचार्य,सुना? रूस में हो गई है हिंदी अनिवार्य,है हिंदी अनिवार्य, राष्ट्रभाषा के चाचा-बनने वालों के मुँह पर क्या पड़ा तमाचा,कहँ ‘काका', जो ऐश कर रहे रजधानी में,नहीं डूब सकते क्या चुल्लू भर पानी में,पुत्र छदम्मीलाल से, बोले श्री मनहूस,हिंदी पढ़नी होये तो, जाओ बेटे रूस,जाओ ब

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ससुर जी उवाच (हास्य कविता)- अशोक चक्रधर!

25 सितम्बर 2015
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डरते झिझकते,सहमते सकुचाते,हम अपने होने वाले,ससुर जी के पास आए,बहुत कुछ कहना चाहते थे ,पर कुछ, बोल ही नहीं पाए।वे धीरज बँधाते हुए बोले-बोलो! अरे, मुँह तो खोलो।हमने कहा-जी. . . जीजी ऐसा हैवे बोले-कैसा है?हमने कहा-जी. . .जी ह़महम आपकी लड़की काहाथ माँगने आए हैं।वे बोलेअच्छा!हाथ माँगने आए हैं!मुझे उम्मीद

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चुटपुटकुले (हास्य कविता) -अशोक चक्रधर

26 सितम्बर 2015
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ये चुटपुटकुले हैं,हंसी के बुलबुले हैं।जीवन के सब रहस्यइनसे ही तो खुले हैं,बड़े चुलबुले हैं,ये चुटपुटकुले हैं।माना किकम उम्र होतेहंसी के बुलबुले हैं,पर जीवन के सब रहस्यइनसे ही तो खुले हैं,ये चुटपुटकुले हैं।ठहाकों के स्त्रोतकुछ यहां कुछ वहां के,कुछ खुद ही छोड़ दिएअपने आप हांके।चुलबुले लतीफ़ेमेरी तुकों

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हंसी के रसगुल्ले !

10 अक्टूबर 2015
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रामू नहा रहा था, रामू की पत्नी– ई का जी, बलवा के साथे – साथे शैम्पूआकन्धवा पर काहे लगा रहेहैं, एकदम पगले है का ??रामू– तु पागल, तोराबाप पागल, तोरा पुराखानदान पागल….. देखतीनहीं है शैम्पूआ पर कालिखा है…हेड्स & शोल्डर्स! रेलवे TC:- बाबा कहाँ जाओगे ?साधु बाबा : -जहाँ राम का जन्म हुआ था .TC: टिकट दिखाओ

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कालिज स्टूडैंट (हास्य कविता)- काका हाथरसी

14 अक्टूबर 2015
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फादर ने बनवा दिये तीन कोट¸ छै पैंट¸लल्लू मेरा बन गया कालिज स्टूडैंट।कालिज स्टूडैंट¸ हुए होस्टल में भरती¸दिन भर बिस्कुट चरें¸ शाम को खायें इमरती।कहें काका कविराय¸ बुद्धि पर डाली चादर¸मौज कर रहे पुत्र¸ हडि्डयां घिसते फादर।पढ़ना–लिखना व्यर्थ हैं¸ दिन भर खेलो खेल¸होते रहु दो साल तक फस्र्ट इयर में फेल।फस

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रहने को घर नहीं है (हास्य-व्यंग्य)

15 अक्टूबर 2015
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ओ घोड़ी पर बैठे दूल्हे क्या हँसता है! ( हास्य कविता )

17 अक्टूबर 2015
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ओ घोड़ी पर बैठे दूल्हे क्या हँसता है!!देख सामने तेरा आगत मुँह लटकाए खड़ा हुआ है .अब हँसता है फिर रोयेगा ,शहनाई के स्वर में जब बच्चे चीखेंगे.चिंताओं का मुकुट शीश पर धरा रहेगा.खर्चों की घोडियाँ कहेंगी आ अब चढ़ ले.तब तुझको यह पता लगेगा,उस मंगनी का क्या मतलब था,उस शादी का क्या सुयोग था.अरे उतावले!!किसी

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एअर कंडीशन नेता ( हास्य कविता )

26 अक्टूबर 2015
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हंसी एक्सप्रेस

27 अक्टूबर 2015
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हँसते-हँसते हो जाओगे लोटपोट!

5 नवम्बर 2015
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टीचर: सच ओर वहम में क्या फ़र्क़ है ?स्टूडेंट: आप जो हमें पढ़ा रही हैं वो सच है, लेकिन हम सब पढ़ रहे हैं ये आपका वहम है…….लड़की –बादल गरजे तोतेरी याद आती हैसावन आने सेतेरी याद आती हैबारिश की बुंदों मेंतेरी याद आती हैलड़का-पता है पता है तेरी छतरी मेरे पास पड़ी है लौटा दुंगा, मर मत….बंटू को सड़क पे 100

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मुस्कुराते रहो!

18 नवम्बर 2015
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पंखा पुराण (हास्य कविता)

23 नवम्बर 2015
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पुरानी शायरी नये संदर्भ (पैरोडियाँ)

24 नवम्बर 2015
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अभी तो मैं जवान हूँ ज़िन्दगी़ में मिल गया कुरसियों का प्यार है अब तो पाँच साल तक बहार ही बहार है कब्र में है पाँव पर फिर भी पहलवान हूँ अभी तो मैं जवान हूँ। जब लाद चलेगा बंजारा

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जब उसने मुझे भइया कहा ( हास्य कविता)

27 नवम्बर 2015
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मैंने ना जाने कितने सपने बुने सपने बुने फिर वे धुने किन्तु दिल का इकलौता अरमाँ आसुओं में बहा जब उसने मुझे देखते ही भइया कहा। होटल में गया वेटर को बुलवाया बिरयानी और न जाने क्या क्या मंगवाया किन्तु मेरा दिल वहाँ भी रोता ही रहा बिल चुकता करने के बाद  जब चिट पर लिख कर आय

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कलयुग में अब ना आना रे प्यारे कृष्ण कन्हैया

2 दिसम्बर 2015
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कलयुग में अब ना आना रे प्यारे कृष्ण कन्हैया,तुम बलदाऊ के भाई यहाँ हैं दाउद के भैया।।दूध दही की जगह पेप्सी, लिम्का कोकाकोलाचक्र सुदर्शन छोड़ के हाथों में लेना हथगोलाकाली नाग नचैया। कलयुग में अब. . .।।गोबर को धन कहने वाले गोबर्धन क्या जानेंरास रचाते पुलिस पकड़ कर ले जाएगी थानेलेन देन क

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