सेर को सवा सेर
एक समय की बात है। चंदनपुर में कालू नाम का एक ठग रहा करता था। वह राहगीरों को खूब ठगा करता था। गांव वाले उसकी हरकत से परेशान थे, लेकिन ऐसी कोई तरकीब नहीं निकाल पा रहे थे कि कालू को सबक सिखाया जा सके।
एक दिन कालू खेतों की ओर जाती पगडंडी पर खड़ा था कि उसे दूसरी ओर से आता एक नौजवान नजर आया। उसके एक हाथ में घोड़े की लगाम थी और दूसरे हाथ में बकरी की रस्सी। अजनबी को पास आते देख कालू मुस्कराते हुए बोला, “राम-राम भैया। लगता है बड़ी दूर से आ रहे हो।”
“हां, मैं दूर गांव का रहने वाला हूं। श्याम नगर अपनी ससुराल जा रहा हूं। मो कछ रुपयों की आवश्यकता है, इसलिए मैं यह बकरी बेचना चाहता हूं।” अजनबी ने जवाब दिया। यह सुनते ही कालू की आंखों में चमक आ गई। उसने तरंत उस अजनबी को ठगने की योजना बना ली। वह बोला. “अच्छा या दस घोड़े के साथ जो बकरी है, वह कितने की दोगे?”
अजनबी बोला, “पांच सौ रुपये की।”
“ठीक है मुझे सौदा मंजूर है, यह लो पांच सौ रुपये। चलो अब घोड़े से उतरो, यह घोड़ा भी मेरा हुआ।” ठग ने कहा।
“क्या?” अजनबी चौंकते हुए बोला, “तुमने सिर्फ बकरी ली है, घोड़ा नहीं।”
“अरे, घोड़ा कैसे नहीं दोगे? मैंने तुमसे पहले ही पूछ लिया था कि इस घोड़े के साथ जो यह बकरी है, वह कितने की दोगे? यानी घोड़े और बकरी दोनों की कीमत पांच सौ रुपये थी, जो मैंने तुम्हें दे दी है।” कालू बोला। अब तक वहां काफी लोग जमा हो चुके थे। उन्होंने भी कालू की बात पर हामी भरी। कालू के चेहरे पर विजयी भाव थे। वह अजनबी से घोड़ा और बकरी लेकर शान से अपने घर की ओर जाने लगा। तभी अजनबी ने उसे रोका, “सुनो भैया।”
उसकी आवाज सुनकर कालू रुक गया और बोला, “क्या बात है?”
“बात दरअसल यह है कि मेरा घोड़ा और बकरी तो तुमने ले ली है। अब मैं क्या मुंह लेकर अपनी ससुराल जाऊंगा। अतः मैं अपनी यह रेशमी पगड़ी तुम्हें बेचना चाहता हूं और इस पगड़ी की कीमत मैं सिर्फ एक मुट्ठी चावल लूंगा।”
यह सुनकर कालू सोचने लगा, वाह आज का दिन तो बहुत बढ़िया है। यह तो निरा काठ का उल्लू निकला। अपनी प्रसन्नता को छुपाते हुए कालू सहजता से बोला, “ठीक है। जब तुम इतना निवेदन कर रहे हो, तो मैं ठुकरा नहीं सकता। सामने ही मेरा घर है। मेरे साथ चलो। मैं तुम्हें एक मुट्ठी चावल दिलवा देता हूं।”
घर पहुंचते ही कालू ने अपनी पत्नी को आवाज लगाई, “सुनती हो भाग्यवान, जरा एक मुट्ठी चावल लाना। इस अजनबी से मैंने उसकी पगड़ी एक मुट्ठी चावल के बदले खरीदी है।”
उसकी पत्नी जैसे ही एक मुट्ठी चावल उस अजनबी को देने लगी, उसने तुरंत कालू की पत्नी का हाथ पकड़ लिया और चाकू निकालकर उसकी मुट्ठी काटने के लिए बढ़ने लगा। यह देख कालू चिल्लाया, “अरे यह क्या कर रहे हो?”
“मैं यह मुट्ठी काट रहा हूं। तुम इस एक मुट्ठी चावल के बदले पगड़ी का सौदा कर चुके हो।” अजनबी बोला।
यह सुनकर कालू के पैरों तले से जमीन खिसक गई। सभी गांव वाले उस अजनबी की चतुराई देखकर वाह-वाह ! करने लगे। क्योंकि आज सेर को सवा सेर मिल गया था। कालू गिड़गिड़ाकर उस अजनबी से कहने लगा, “मुझे माफ कर दो भैया। मैं अपनी भूल स्वीकार करता हूं, यह लो तुम्हारा घोड़ा और बकरी । यह पांच सौ रुपये भी तुम ही रखो। किंतु मेरी पत्नी को छोड़ दो।”
“हूं, ठीक है। अब आई तुम्हारी अक्ल ठिकाने।” यह कहकर अजनबी पुनः अपनी यात्रा पर चल दिया।