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शरद पूर्णिमा

16 अक्टूबर 2024

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सभी बीमारियाँ थम हो चले हैं।
हवा थोड़ी नम हो चले हैं।

कितने दौड़ धूप करते रहें।
उनके मूरत पर शक करते रहे।
इन्सानो में विश्वास कम हो चले हैं।

जो भी करना था हमने किया।
अब रब की आबोहवा हो चले हैं।

क्या कहने पूर्णिमा की रात का।
मेरी ऊर्जा गतिमान हो चले हैं।

बना लो आशियां इस जहाँ में।
अब हर मसला हल हो चले हैं।

save tree🌲save earth🌏&save life💖 

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रचनाएँ
जिन्दगी एक गजल
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हम इंसान उनकी मूरत है कभी उसके रचना पर शक करते हैं तो कभी विश्वास नही कर पाते। जो भी करने वाला है उनके करामतो से होगा। आदमी किसी अनुभव से गुजर कर ही हीरा हो पाता है ऐसे ही जीवन के हर दिशाओं की रंगत मेरी रचनाओं में आपको मिलेगी।

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