*राम नाम की महिमा* सर्वविदित है ! वेद, पुराण तथा शायद ही कोई ऐसा ग्रन्थ बचा हो जिसमें हरिनाम की महिमा को न गाया गया हो ! कवियों / सन्तों - विचारकों आदि कभी नाम के अतिरिक्त दूसरा साधन प्रभु प्राप्ति का सरल व सुलभ नहीं बताया है | भगवत्प्राप्ति के लिए अन्य जो साधन (पूजा , जप , तप , ध्यान आदि) बताया गया है उसके लिए विशेष तैयारी करनी पड़ती है परंतु *नाम लेने के लिए* कोई तैयारी नहीं करनी है ! *तुलसीदास जी* लिखते हैं :--
*भायँ कुभायँ अनख आलसहूँ !*
*नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ !!*
कवियों ने गाया है:--
*जिस देश में जिस वेष में परिवेश में रहो !*
*राधारमण राधारमण राधारमण कहो !!*
कहने का तात्पर्य यह है कि :- कोई कही भी किसी भी अवस्था में *नाम सुमिरन* कर सकता है ! *हरि नाम सुमिरन* के लिए व्यक्ति को कोई विशेष तैयारी नही करनी पड़ती | व्यक्ति सुबह-सायं दिन-रात कभी भी *नाम सुमिरन* कर सकता है | *नाम की महिमा* इतनी विशाल है कि :--
*महामंत्र जोइ जपत महेसू !*
*काशी मुकुति हेतु उपदेसू !!*
कहते हैं कि जिसकी मृत्यु काशी में होती है भगवान शिव उसको मोक्ष प्रदान कर देते हैं ! यदि भगवान शिव के द्वारा भक्तों को मोक्ष दिया जा रहा है तो उसका रहस्य भगवान का *नाम* ही है जिसे महामंत्र मानकर भगवान शिव निरंतर जपा करते हैं ! यदि इस पर सूक्ष्मता से विचार किया जाय तो आप जान पायेंगे कि भगवान शिव अजन्मा हैं ! जिनक् आदि - अन्त का किसी को भी पता नहीं है | भगवान भोलेनाथ जब निरंतर *राम नाम* का जप करते रहते हैं तो प्रतिपल काल कवलित होने वाले साधारण मनुष्य आखिर *नाम की महिमा* को क्यों नहीं जान पाते ??
*जपत निरन्तर हृदयं में , अविनाशी शिव राम !*
*मन मूरख क्यों भटकता , कर ले कुछ तो काम !!*
हम आखिर क्यों दुनिया के प्रपंचों में अपना समय व्यर्थ गंवा रहे हैं ? *नाम की महिमा* इतनी बड़ी है कि उस पवित्र पावन *नाम* का जप करके गौरी पुत्र गणेश देवताओं में पूज्यनीय हो गए !
*राम को नाम बड़ो जग में ,*
*नहिं महिमा कोऊ पार है पावत !*
*नाम जपत निशिदिन शिवशंकर ,*
*नारद नाम निरन्तर गावत !!*
*नाम जपत बहु पातक नाशत ,*
*नाम को वेद पुरान बतावत !*
*"अर्जुन" नाम रटो दिन रजनी ,*
*नाम जपत यम नाहिं सतावत !!*
इस जीवन का कोई भरोसा नहीं है , मृत्यु पीछे लगी हुई है ! इस असार संसार से सरलता पूर्वक यदि पार होना है तो *नाम* से अच्छा साधन कोई दूसरा है ही नहीं ! किसी संत ने कहा है :--
*जागन से सोना भला , जो कोई जाने सोय !*
*श्वांस श्वांस में राम का प्रतिपल सुमिरन होय !!*
राम का नाम लेने के लिए कोई विशेष तैयारी की आवश्यकता नहीं है आवश्यकता है मुख से *राम नाम* निकलने की ! नाम चाहे जिस भाव से लिया जाय वह कल्याणकारी ही होता है ! *तुलसीदास जी* बताते हैं:--
*तुलसी अपने राम को रीझ भजो चाहे खीज !*
*भूमि पड़ें जम जायंगे , उल्धे सीधे बीज !!*
*क्रमश: :---*