*श्री गुरु पद रज नमन कर , संत चरन सिर नाय !*
*राम नाम महिमा कहहुँ , हम पर होहुँ सहाय !!*
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*श्री सद्गुरु देव भगवान* के चरणों में नमन करके गोलोकवासी *परमपूज्य पिताजी* का सूक्ष्म आशीर्वाद लेकर *श्री राम एवं नाम महिमा* अनेक सद्ग्रन्थों का सहारा लेकर लिखने का सूक्ष्म प्रयास कर रहा हूँ ! *यद्यपि मैं कोई लेखक या कवि नहीं हूँ* फिर भी भगवान के नाम का आश्रय लेकर *नाम महिमा* का वर्णन करने का प्रयास कर रहा हूँ ! *आशा है कि विद्वतसमाज बालक समझकर मेरे द्वारा लिखे जा रहे शब्दों में हुई गलतियों को अनदेखा करके आशीर्वाद प्रदान करने की कृपा करेंगे !*
किसी भी ओर चलने के पहले एक तथ्य जान लिया जाय कि :--
*राम कृष्ण दोउ एक हैं , अन्तर नहीं निमेष !*
*एक के नयन गंभीर हैं , एक के चपल विशेष !!*
राम एवं कृष्ण में कोई भी भेद नहीं है ! भेद है तो मात्र युगों का ! जहाँ जैसी आवश्यकता पड़ी वैसा अवतार धारण करके भगवान को आना पड़ा ! अवतारों में देश - काल परिस्थिति की भिन्नता अवश्य है परंतु सबमें समानता एक है वह है - *नाम की महिमा* ! इस संसार में अनेकों जीव आते जाते रहते हैं परंतु जाने के बाद भी उनके कर्मों के अनुसार उनका *नाम* यहीं रह जाता है ! इसलिए कहना पड़ रहा है:-
*"अर्जुन" यहि संसार में , आवत जीव तमाम !*
*समय बीति चलि जात हैं , अचल रहत है नाम !!*
*नाम अमर संसार में , नामी ते अधिकाय !*
*नामी जग ते जात है , नाम कतहुँ नहिं जाय !!*
चाहे हमारे आदर्श , हमारे आराध्य हों चाहे कोई साधारण मनुष्य सबकी पहचान उसके नाम से ही होती है ! इसलिए *नाम की महिमा* संसार में जितनी कही जाय उतनी कम ही है !
नाम और नामी के विषय में *तुलसीदास जी* कहते हैं :--
*समुझत सरिस नाम अरु नामी !*
*प्रीति परसपर प्रभु अनुगामी !!*
*नाम रूप दुइ ईस उपाधी !*
*अकथ अनादि सुसामुझि साधी !!*
*नाम* और नामी में बहुत ही सूक्ष्म भेद है ! समझने में नाम और नामी दोनों एक से हैं, किन्तु दोनों में परस्पर स्वामी और सेवक के समान प्रीति है (अर्थात् नाम और नामी में पूर्ण एकता होने पर भी जैसे स्वामी के पीछे सेवक चलता है, उसी प्रकार *नाम के पीछे नामी चलते हैं !* प्रभु श्री रामजी अपने 'राम' नाम का ही अनुगमन करते हैं (नाम लेते ही वहाँ आ जाते हैं) ! नाम और रूप दोनों ईश्वर की उपाधि हैं, ये (भगवान के नाम और रूप) दोनों अनिर्वचनीय हैं, अनादि हैं और सुंदर (शुद्ध भक्तियुक्त) बुद्धि से ही इनका (दिव्य अविनाशी) स्वरूप जानने में आता है !!
श्री राम जी को तो परब्रह्म एवं विष्णु जी का अवतार कहा जाता है परंतु *नाम* को ब्रह्मा , विष्णु एवं शिव का मुलाजुला स्वरूप बताते हुए *तुलसीदास जी* लिखते हैं:--
*बंदउँ नाम राम रघुबर को !*
*हेतु कृसानु भानु हिमकर को !!*
*बिधि हरि हरमय बेद प्रान सो !*
*अगुन अनूपम गुन निधान सो !!*
*तुलसीदास जी* कहते हैं :- मैं श्री रघुनाथजी के *नाम* 'राम' की वंदना करता हूँ , *कौन नाम ?* जो कृशानु (अग्नि), भानु (सूर्य) और हिमकर (चन्द्रमा) का हेतु अर्थात् *'र' 'आ' और 'म' रूप से बीज है !* वह *'राम' नाम ब्रह्मा, विष्णु और शिवरूप है !* वह वेदों का प्राण है, निर्गुण, उपमारहित और गुणों का भंडार है |
*राम नाम की महिमा* की व्याख्या करते हुए *श्रीराधा जी* स्वयं कहती हैं :--
*राशब्दो विश्ववचनो मश्चापीश्वरवाचक: !*
*विश्वानामीश्वरो यो हि , तेन राम: प्रकीर्तित: !!*
*रमते रमया सार्वं , तेन रामं बिदुर्बुधा !*
*रमाया रमणस्थानं , रामं राम विदो विदु: !!*
*राश्चेति लक्ष्मीवचनो , मश्चापीश्वरवाचक: !*
*लक्ष्मीपतिं गतिं रामं , प्रवदन्ति मनीषिण: !!*
(ब्रह्मवैवर्त पुराण / श्रीकृष्णजन्म खण्ड / १११/१८-२०)
*अर्थात् :-* राधा जी कहती हैं:- रा शब्द विश्ववाचक है और म शब्द ईश्वरवाचक है ! अत: लोकों का ईश्वर होने के कारण उन्हें *राम* कहा जाता है ! रमा के साथ रमण करने के कारण वे राम कहलाते हैं ! रा लक्ष्मीवाचक है और म ईश्वरवाचक इसलिए विद्वत मनीषीगण उन्हें राम कहते हैं !
*श्री राम और उनके नाम की महिमा* अकथनीय है ! इनकी महिमा का वर्णन करना सूर्य को पकड़ने जैसा उपक्कम करने के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है !
*क्रमश: :---