निशीथ :
1- रात्रि
2- रजनी
3- यामिनी
4- विभावरी
5- शताक्षी
प्रयोग :
तुम नभ हो मैं नीलिमा I
तुम शरद-सुधाकर-कला-हास,
मैं हूँ निशीथ-मधुरिमा II
21 जनवरी 2016
निशीथ :
1- रात्रि
2- रजनी
3- यामिनी
4- विभावरी
5- शताक्षी
प्रयोग :
तुम नभ हो मैं नीलिमा I
तुम शरद-सुधाकर-कला-हास,
मैं हूँ निशीथ-मधुरिमा II
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आकाशवाणी के कानपुर केंद्र पर वर्ष १९९३ से उद्घोषक के रूप में सेवाएं प्रदान कर रहा हूँ. रेडियो के दैनिक कार्यक्रमों के अतिरिक्त अब तक कई रेडियो नाटक एवं कार्यक्रम श्रृंखला लिखने का अवसर प्राप्त हो चुका है. D
यामिनी ज्यों अंक में सांझ समेटे हुए अतृप्त विभावरी शरद की सतरंगिनी... सुन्दर...
21 जनवरी 2016