भव सागर, यह संसार है जीवन, सागर मझधार हैघोर, गहन विपदा है घेरेजीवन में है, तेेरे और मेरे झंझावत ढेरों पारावार हैलहरों से उठती, हुँकार है आशा और निराशा इसमेंजीवन की दो पतवार है निराशा से होता कहाँ ?जन-जीवन का उद्धार हैआशा से ही लगती यहाँनौका तूफानों से पार हैभव-स