इसका जिक्र हमारे लगभग सारे सत्संगो में होता हे।कबीर साब सभी इसका जिक्र अपनीअपनी वाणी में करते हे सुरती का मतलब जानने के लिए परोक्ष से उतरना जरुरी हे।
जेसे ”एक माँ खाना बना रही हे वो खाना बनाती रहती हे उसका छोटा सा बच्चा आस पास खेल रहा हे उपर से देखने में ऐसा लगता हे जेसे उसका सारा ध्यान खाना बनाने में लगा हे ।
लेकिन उसकी सुरती बच्चे में लगी हे “ वो कही सीडी के पास तो नही पहुंच गया, वो कही झूले से नीचे तो नही उतर गया, उसने कोई चीज़ हाथ में तो नही ले ली जो नही खानी हे ।
वो नीचे तो नही गिर गया, खाना बनाने में लगी हे लेकिन सारे काम में ओत प्रोत स्मरण वो बच्चे का हे माँ रात सोती हे आकाश में बादल गरजे बिजली कड़के तो भी उसकी नींद नही टूटती , और यदि बच्चा थोडा सा कुनमुनाये और उसकी नींद टूट जाती हे तूफ़ान गुजरता रहे घर के उपर से माँ सोती रहती हे मगर बच्चा थोड़ी सी करवट ले तो माँ का हाथ नींद में उठ जाता हे नींद में भी सुरती हे समरन बच्चे का बना हे सुरती का अर्थ हे मनको में धागे की तरह "रहो संसार में
लेकिन सुरती सतगुरु की बनी रहे , उठो बैठो जो करने योग्य हे करो भागने से कुछ न होगा , दुकान पर जाओ , फेक्टरी जाओ, धन भी कमाना हे बच्चो का फ़िक्र भी करना होगा,
इस सारे जाल के बीच स्मरण या सुरती उस प्यारे सतगुरु में लगी रहे ये सब उपर उपर हो वो भीतर भीतर हो हमेशां दुनिया तुम्हारे बाहर बाहर रहे, वो सतगुरु सदेव भीतर हो नाता उससे जुड़ा रहे।
इसीलिये गुरु नानक कहते हे कुछ छोड़ के जाने की जरूरत नही सुरती को पालो तुम सन्यासी हो गये। सुरती सम्भाल लो सब सम्भल गया।
जेसे तुम्हे कोहिनूर हीरा मिल जाये उसे तुम जेब में रख लो करोड़ो रूपये कीमत हे, अब तुम कही भी जाते हो तुम्हारी सुरत उस हीरे में हे लोगो से बात भी करोगे, पत्नी से बात करोगे , बच्चो में रहोगे रात को सोओगे भी लेकिन तुम्हारी सुरत उस कोहिनूर हीरे में रहेगी और बीच बीच में तुम जेब में हाथ डालकर चेक करते रहोगे कही गिर तो नही गया
इसी तरह सारे काम करते हुवे अपनी सुरत उस अमुल्य हीरे प्यारे सतगुरु के चरणों में लगाये रखो सभी काम करो लेकिन बीच में सुरती को बीच बीच में चेक करते रहो वो चरणों को छोडकर नीचे तो नही गिर गई हे।
जेसे माँ को इसके लिये कोई अभ्यास नही करना पड़ता उसका बच्चे से प्यार ये करवाता हे इसी तरह हमारा सतगुरु से गहरा प्यार प्रेम हमसे यह करवायेगा।