कन्हैया कहां हो तुम...। देख रहे हो ये क्या हो रहा है तुम्हारे प्रेम की नगरी में। कभी फूल की होली खेली जाती थी कन्हैया तेरे इस मथुरा में। पर अचानक से ये क्या हो गया मथुरा के वाशिंदों को...। आज खून की होली...।
वैसे सही कहे तो कन्हैया अच्छा भी है कि आप नहीं देख रहे हैं ये सब। न देख पाते आप। लोग मिसाल देते हैं। कहते हैं देखिए मथुरा में फूल की होली खेली जा रही है। नए लहंगा और फरिया पहने गोपियां रसिया गायन, आज बिरज में होरी रे रसिया और ऐसो चटक रंग डारयों श्याम मेरी चुनर में लग गयो दाग री...। ऐसे गानों के बीच जब लठमार होली होती तो देखते बनता था। महिलाएं लाठियों से पुरुषों की पिटाई करतीं। पुरुष लोहे की ढाल पर अपना बचाव कर रहे थे। बड़ा ही मनोरम दृश्य...।
पर ये सब सपना जैसे लगने लगा। लोग फूल की जगह खून की होली खलेने को आतुर हैं। कान्हा... इस खूनी होली ने एसपी सिटी मुकुल द्विवेदी व एसओ संतोष यादव को 'शहीद' की उपमा दे दी। पर उनके बीवी-ब्च्चों को जिंदगीभर तक न भरा जाने वाला जख्म दे गया। कितनी नफरत हो गई होगी उस परिवार को तेरे मथुरा से कान्हा। जवाहरबाग में अवैध कब्जा हटाने के दौरान ये खूनी होली खेली गई। आखिर क्या हो गया। बेकसूरों को अपनी जान गंवानी पड़ी।
'सियासी भट्ठा' बन गया मथुरा...
कान्हा, और तो और अब मथुरा भी 'सियासी भट्ठा' बनकर रह गया। अब तक तो राम का अयोध्या ही भट्ठा बना था। पर दो दिन पहले से तेरा मथुरा भी 'सियासी भट्ठा' बन गया। कान्हा विधानसभा चुनाव नजदीक है। अब पास तो नहीं हो पर दूर से ही देखो कि मथुरा को 'सियासी भट्ठा' बनाने के बाद कैसे रोटी सेंकी जा रही है। अब सब खुद को 'अपना' बताएंगे। पर हकीकम क्या है तुम्हें तो मालूम है न कान्हा। हे कान्हा अब इस नफरत को प्रेम में बदलो। कन्हैया एक बार फिर से आ जाओ। कह दो मेरे मथुरा से दूर चले जाओ खूनी होली खेलने वालों...। मुझे फूल से प्यार है खून से नहीं।