प्रिय साथियों
शब्दनगरी में आपका स्वागत है। ये कहानी कुछ सीख देती है हम सबको। इसलिए हमने अपने एक साथी की इस रचना को यहां रखना उचित समझा। शब्दनगरी टीम से अपेक्षा है कि वह इसे उचित स्थान दे। ताकि लोगों तक एक संदेश पहुंच सके।
दरअसल, मोहल्ले में रहने वाली दो लडकियों मीना और सोनाली की शादी एक ही दिन तय हुई। मीना गरीब घर की लड़की थी उसके पिताजी एक छोटे किसान थे। जबकि सोनाली अमीर घराने की लड़की थी। उसके पिताजी का कारोबार कई शहरो में फैला था! शादी वाले दिन मै भी पडोसी होने के नाते काम में हाथ बटाने सोनाली के घर गया, घर पंहुचा ही था के सोनाली के पिता जी लगे अपने रहीसी बताने वो बोले हमारा होने वाला दामाद सरकारी डॉक्टर है। खानदानी अमीर है पर हम भी कहा कम है। 20 लाख नकद एक कार और सब सामान दे रहे है दहेज़ में! मैंने कहा ताऊ जी जब वो इतने अमीर है तो आप ये सब उन्हें क्यों दे रहे हो उनके पास तो ये सब पहले से होगा ही, वो बोले अगर ना दू तो बिरादरी मे नाक कट जाएगी पर तू ये सब नहीं समझेगा तू अभी छोटा है, खैर शाम को बारात आ गई मै खाना खाने के बाद मीना के घर की तरफ जाने लगा आखिर उसकी भी तो शादी है ! उसके घर के बहार भीड़ लगी थी मगर ना कोई गाना, ना कोई डांस, ना किसी के चेहरे पर मुस्कान, घर के और करीब जाने पर चीख-पुकार का करुण रुदन मेरे कानो को सुनाई दिया, किसी अनहोनी की आशंका से मेरे दिल जोरो से धडकने लगा, घर के अन्दर का द्रश्य देखकर मेरे पैरो के नीचे से जमीन निकल गई! मीना के पिताजी अब इस दुनिया में नहीं थे! वो दहेज़ में दी जाने वाली रकम का इन्तेजाम नहीं कर पाए इसलिए लड़के वालो ने शादी से मना कर दिया, ये सदमा वो बर्दास्त नहीं कर पाए और हिर्दय गति रुकने से उनका देहांत हो गया ! ये दुःख की खबर सुनाने मै अपने घर पहुंचा, अपनी माता जी से ये सब बता ही रहा था इतने में बड़े भाई ने पीछे से आकर बताया के मीना ने भी फासी लगाकर आत्महत्या कर ली है, वो अपने पिताजी की मौत का कारण खुद को समझ बैठी थी इसलिए शायद उसने यही ठीक समझा!!
दोस्तों दहेज़ प्रथा एक अभिशाप है, ना जाने कितनी मौते इस दहेज़ प्रथा के कारण होती है! आप सब से आपके मित्र की विनती है,
दहेज़ ना ले, और ना दे !
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