न कोई निमंत्रण, न ही कोई बुलावा। न कोई पोस्टर और न ही पम्फलेट का वितरण। न मुनादी और न किसी का आह्वान। बिना किसी अपील और उकसावे के युवा अपने घरों से निकलने को बेताब हैं। कहीं-कहीं से कांवरियों का जत्था रवाना भी हो चुका है।
कांधे पर कांवर, गेरुआ वस्त्र पहने, कमर में इलाहाबाद की शान कहा जाने वाला गमछा। सड़कों पर नंगे पैर चलने वाले ये लोग देवों के देव महादेव के समर्पित भक्त हैं। इनमें हर जाति-उम्र के लोग शामिल हैं। बच्चे भी हैं, किशोर भी हैं और युवा, अधेड़ व बूढ़े भी। स्त्री भी शामिल हैं। राष्ट्रीय एकता एवं सामाजिक समरसता का इससे ज्यादा प्रामाणिक और पावन उदाहरण और क्या हो सकता है। 'हर-हर, बम-बम', 'बोलबम' के साथ भोले बाबा की जय-जयकार करता यह जनसमूह स्वतः स्फूर्त होकर सावन का महीना प्रारंभ होते ही ठाठें मारता चल पड़ता है। इसमें गरीब-अमीर, अगड़े-पिछड़े, छोटे-बड़े, ऊंच-नीच सब एकरस हो उठते हैं। सबकी एक ही जाति है। वह है कांवरिया। जो भी है, वह इस भक्ति अभियान में सिर्फ कांवरिया है और कुछ नहीं...।
कांवर यात्रा यानि तप
सावन में रिमझिम वर्षा और घनघोर घटाओं के बीच मस्ती के साथ झूमते-गाते हरिद्वार और नीलकंठ तक लोग जाते हैं। गंगाजल लेकर नंगे पांव पैदल चलकर लौटते हैं। यात्रा के नियम बड़े कठोर हैं। जो शिव भक्तों ने स्वयं ही तय किए हैं। जैसे, यात्रा के दौरान किसी प्रकार का व्यसन न करना, कांवर को किसी भी स्थिति में जमीन पर नहीं टिकने देना, नंगे पैर चलना और घर में साग-सब्जी में छौंक न लगाना आदि।
कुत्ते के स्पर्श से भी अशुद्ध हो जाता है जल
हर वर्ष कांवर लेकर बाबा धाम जाने वाले कांवरियों से बात हुई। इस पर उन्होंने बताया कि उनके लिए कांवर शिव स्वरूप होता है। इसलिए इसे जमीन पर नहीं रखा जाता है। यही कारण है कि मार्ग में जहां भी ठहरते हैं कांवर को किसी ऊंचे स्थान पर रखते हैं। ताकि भूमि से कांवर का स्पर्श न हो। मान्यता है कि कुत्ते का स्पर्श होते ही कांवर में रखा जल अशुद्घ हो जाता है। जो भोले बाबा पर नहीं चढ़ाया जा सकता है। ऐसी स्थिति आने पर कांवरिये को वापस लौटना पड़ता है और फिर से जल भरकर यात्रा शुरू करनी पड़ती है। कांवड़ को ऊंचे स्थान पर रखने के पीछे एक कारण यह भी हो सकता है। शास्त्रों में कुत्ते को काल भैरव का वाहन कहा गया है। भैरव बाबा शिव के संहारक रूप हैं और इनकी प्रकृति तमसिक होने के कारण इन्हें अपवित्र माना जाता है और इन्हें यज्ञ भाग से वंचित रखा गया है। कुत्ते का स्पर्श होने पर माना जाता है कि भैरो ने गंगा जल का स्पर्श कर लिया है इसलिए गंगा जल अशुद्घ हो गया। अशुद्घ जल शिव को नहीं चढ़ता है इसलिए कांवरियों को पुनः जल भरना पड़ता है।