कुछ जरूरी काम से मुझे राजधानी दिल्ली आना पड़ा. दोपहर की कड़कती धुप के बीच ऑटो से दिलशाद गार्डेन मेट्रो स्टेशन की तरफ जा रहा था. सच बताऊ तो इस दौरान बशीर बद्र साहब की शायरी अचानक जुबां पर आ गई. सात संदूक़ों में भर कर दफ़्न कर दो नफ़रतें आज इंसाँ को मोहब्बत की ज़रूरत है बहुत.
दरअसल , जिस ऑटो पर मै बैठा था बीच रस्ते में उसका सीएनजी खत्म हो गया. तब यहाँ जो एकता देखने को मिली वाकई वह कबीले तारीफ थी. सीख लेनी चाहिए धर्म के नाम पर लड़ने औरलड़ानेवालो को. उसके बाद मथुरा और सहारनपुर की तरह 2 गुटों में नफ़रत की चिंगारी फ़ैलाने वालो को.ऑटो के पीछे से उसके दूसरे साथी ने अपने ऑटो से धक्का दिया. इस तरह करीब 5 किलो मीटर का सफर उसने तय किया. सलाम .